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कर्मग्रम्प भाग पार
२६४
(सिख) अनन्त है, इसीले प्रयोगिकेवली जीप चौधेगुणस्थानघालोंसे अनन्तगुण कहे गये हैं। साधारण घनस्पतिकायिक जीध सिखोंसे भी अनन्तगुण है और वे सभी मिथ्याटि है। इसीसे मिथ्याधि. थाले बौदह गुणस्थानवालीसे मनम्तगुण हैं।
पहला, चौथा, पौषों, छठा, सातों और सेरहवाँ, ये छह गुणस्थान खोकमै लगानीमाये जाते हैं, रोग सार गुनयान कड़ी गड़ी भी पाये जाते; पाये जाते हैं तब भी उनमें वर्तमान जीवोंकी संख्या कमी जघन्य और कभी उस्कृष्ट रहती है। ऊपर कहा दुमा भल्प-बहुत्व उत्कृष्ट संख्याकी अपेक्षासे समझना चाहिये, अघन्य संख्याको अपे. शासे नहीं, क्योकि अन्य संख्याके समय जीवोंका प्रमाण उपर्युक अल्प-बहुत्वके विपरीत भी हो जाता है। उदाहरणार्थ, कभी ग्यारह गुणस्थानवाले बारह गुणस्थानबालोसे अधिक भी हो जाते है। सारांश, उपर्युक्त भल्प-बहुत्य सषगुणस्थानों में जीवों के उत्प-संख्यक पाये जानेके समय ही घट सकता है ॥६॥
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