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कर्मग्रन्प भाग भार
-मायोपथमिक-माव क्षयोपशमसे प्रगट होता है। कर्मके उप. यावलि-अषिष्ट मम्द रसस्पर्धकका पाय और अनुदयमान रसस्पधककी सर्वासिनी विपाक-शक्तिका निरोध या देण्यातिलपमें परिखमन प तीन शक्तिका मन्द शक्तिरूपमें परिणमम ( उपशम), क्षयो
४-ौदायिक-भाष कर्मक उदयसे होनेवाला पर्याय है।
५-पारिणामिक-भाव स्वमायने ही स्वरूपमें परिणत होते रहना है।
एक-एक मायको 'मूलभाष और दो या दास अधिक मिले हुए माचौको 'सामिपातिकमाव' समझना चाहिये ।
भावोंके उत्तर भेद:--ौपशामिक-भावके सम्यक्त्व और चारित्र ये दो ही मेद है। (१) मगन्तानुबन्धि-चतुष्कके शयापशम या उपशम
और दर्शनमोहनीयकर्मके उपशमसे जो तत्व-कचि-याक भात्यपरिणाम प्रगट होता है, यह 'श्रीपशर्मिकसम्यक्त्व है। (२) चारित्रमोहनीयकी पचीस प्रकृतियोंके उपशमसे व्यक्त होनेवाला स्थिरतात्मक परिणाम 'औपमिकचारिश है। यही म्यारहवं गुणस्थानमें प्राप्त होनेवाला 'यथास्थातचारित्र' है। भोपशमिक-भाव सादि-सान्त है ॥६॥ पीए केवलजुयलं, संमं दाणाहलद्धि पण धरणं । तइए सेसुरमोगा, पण लदी सम्मविरइदुगं ।। ६५ ।। दिचीये केवळ युगलं, सम्यग् दानादिलब्धयः पञ्च चरणम् । तृतीये शेषोपयोगाः, पञ्य सम्पयः सम्यगपिरतिदिकम् ॥ १५ ॥
अर्थ-दूसरे (क्षायिक-भाषके केषता-द्विक, सम्यक्रव, दाम मावि पांच सब्धियाँ और बारित्र, ये मौ मेद है। तीसरे (क्षायोपशमिक-)