Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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कभंगाच भाग पार
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नयमान होने के कारण उसकी उदीरणा उस नियम के अनुसार नहीं होती।
तीसरे गुणसानमें मात्र कर्मको ही उदीरणा मानी जाती है, क्योंकि इस गुणस्थानमें मृत्यु नहीं होती। इस कारण मायुको अन्तिम मावलिकामें, जब कि उदीरणा रुक जाती है, इस गुणस्थानका संभव ही नहीं है।
सार, साय बौधौ गुणवाा की धारणा होती है, भायु और वेदनीय कर्मकी नहीं। इसका कारण यह है कि इन शे फोकी उदीरणाकेलिये जैसे अध्यवसाय भावश्यक है, उक्त तीन गुणस्थानों में अतिविशुद्धि होने के कारण बैसे मध्यवसाय नहीं होते।
दसवें गुणस्थानमें वह अथवा पाँच कर्मकी उदारणा होती है। मायु और वेदनीयको उदीरणा न होने के समय छह कर्मको तथा उक्त यो कर्म और मोहनीयकी उदीरणा न होने के समय पाँचकी समझना चाहिये । मोहनीयको उदीरणा यशम गुणवानकी अन्तिम प्रावलि कामें रुक जाती है। सो इसलिये कि उस समय इसको स्पिति भावलिका प्रमाण शेष रहती है। ___ म्यारधि गुणस्थानमें श्रायु, वेदनीय योर मोहनीर की उदारणा न होने के कारण पाँचकी उदारणा होती है। इस गुणस्थानमै रवयमाम न होने के कारण मोहनीयको वीरणा निषिद है