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(१०)-गुणस्थानोंमें अल्प-बहुत्वं ।
[दो गायामोंसे ।] पण दो खीण दु जोगी,-गुदीरगु भजोगि यशेष उपसंता। * संखगुण खीण सुहमा,-नियहीअव सम अहिया ॥२॥
पर ट्रे क्षोणो दे योग्यनुदारोऽयोगी स्तोका उपशान्ताः । संध्यगुणा: शीयाः सूक्ष्माऽनित्यपूर्वाः समा आईकाः ॥ ६२॥ अर्थ-जोख मोहगुणस्थानमै पाँच या दो फर्मकी उदारणा है और सोगिकेवलीगुणस्थानमै सिर्फ दो कर्मकी । अयोगिकेवखीगुरगम्यान में उदीरणाका मारा है।।
उपशान्तमोहगुणस्थान पर्ती जीव सबसे थोड़े हैं। णमोहगुणस्थान-वी जीव उनसे संस्थातगुण हैं । सूश्मसंपराय, अनिवृत्तिादर
और अपूर्वकरण, इन तीन गुणस्थानों में धनमान औव क्षीणमोहगुणस्थानवालोले विशेषाधिक है, पर आपस में तुरूप है ॥६॥
भाषाय-बारहने गुणस्थानमें अन्तिम श्रावलिकाको छोड़कर अन्य सथ समय में भायु, वेदनीय और मोहनीयके सिवाय पाँच कर्मशी उदीरणा होती रहती है। अन्तिम प्राधािकामशानावरणीय, दर्शनावरणीय और अन्तराय की स्थिति प्रालिका प्रमाण शेष रहती है। इसलिये उस समय उनकी उदीरणा सक जातीहै। शेष दो (नाम और गोश) की उदीरणा रहती है।
तेरहवं गुणस्थाममें चार अधातिकर्म ही शेप रहते हैं। इनमेसे आयु और वेदनीयकी उदारणा तो पहले से हो सकी हुई है। इसी कारण इस गुणस्थानमें दो कर्मको उदीरणा मानी गई है।
१-या विषय, पचभ प्रह- २का ८० और ८१ वा वाधा है गोम्मटसार जीवकः ३२२से १२८ तकको माथा भौमे कुछ भित्रस्पसे है।