Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
View full book text
________________
कर्मग्रन्य भाग पार
----
-
(७-८)-गुणस्थानोंमें सत्ता तथा उदय । मासुहमं संतुदये, अट्ट वि मोह विणु सत्स स्वीमि । घउ चरिमदुगे अट्ठ उ, संते उपसंति सत्तुदए ॥६०॥
माम सदुदयेऽष्टापि मोई विना सप्त वीणे ।
चत्वारि चरमद्रिकेऽष्ट तु, सत्युपशान्ते सतोदये ॥६॥ अर्थ-सूक्ष्मसंपरायगुणस्थान पर्यन्त आठ कर्मकी सत्ता तथा भास कर्मका उदय है। क्षोणमोहगुणस्थान में सत्ता और उदय, दोनों सात काँके है । सयोगिकेचली और प्रयोगिफेयली-गुणस्थानमें सत्ता
और उदय चार कमौके हैं। उपसान्तमोगुणस्थानमें सत्ता आठ कर्मको और उदय सात कर्मका है ॥१०॥
भाषा---पहले दस गुणस्थानों सत्ता-गत तथा उदयमान आठ कर्म पाये जाते हैं। ग्यारहवें गुणम्यानमें मोहनीयकर्म सप्ता-रत रहता है, पर उदयमान नहीं, इसलिये उसमें सत्ता माठ कर्मकी
और उदय सात कर्मका है। पारा गुणस्थानमें माननीयदर्म सर्यथा नष्ट हो जाता है, इसलिये सच्चा और उदय दानी सात कर्म के हैं। लेरहये और चौदहवें गुणस्थानमें सत्ता-गत और उदयमान चार मासिकर्म ही हैं।
सारांश यह है कि ससास्थान पहले ग्यारह गुणम्पानों में पाठका. बारहवें में सातका और तेरहवे और चौवहमें चारका है तथा उदय स्मान पहले इस गुणस्थानोमें आठका, ग्यारह और पारस्में सात. का और तेरहवें और चौवहय में चारका है ||१०||