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कर्मग्रन्थ मार्ग चार
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चौथा गुणस्थान अपर्याप्त व्यवस्था में भी पापा जाता है; इसलिये इसमें अपर्याप्त अवस्था भावी कार्मण, औदारिकमिध और वैक्रिय मिश्र छन तोन योगों का सम्म है। तीसरे गुणस्थान सम्बन्धी ता लोस और ये तीन योग कुल छयालीस बन्ध-हेतु चौथे गुणस्थान में समझने चाहिये । अप्रत्यास्थानावरण- चतुष्या सौथे हो उदयमान रहता है, आगे नहीं । इस कारण वह मैं नहीं पाया जाता । पचिणां गुणस्थान देशविरति रूप स- हिंसा पत्रस- अधिरति नहीं है तथा यह गुणस्थान पर्याप्त अवस्था भावी है। इस कारण
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गुणस्थान तक पांचवें गुणस्थान होने से इसमें केल भावी
कार्मण और औदारिक मिश्र, ये दो योग भी नहीं होते। इस तरह चौथे गुणस्थान सम्बन्धी दपालीस हेतुओं में से उक्त सात के सिवाय शेव दम्मालोस बन्ध हेतु पनि गुणस्थान में हैं । इम उम्तालीस हेसुओं में चैकि पमिश्र काययोग शामिल है, पर वह अपर्याप्त अवस्था भावी नहीं, किन्तु क्रियलब्धि जन्य जो पर्याप्त अवस्था में ही होता है । पाँच स्थान के समय संकल्प- अन्य स-हिंसा का सम्भव हो नहीं है । आरम्भ-जन्य अस हिंसा का संभव है सही, पर बहुत कम इस लिये आरम्भ जन्य अति अल्प अस हिंसा की विवक्षा न करके उन्हालीम हेतुओं में वस-अविरसि की गणना नहीं की है।
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छठा गुणस्थान सर्वविरतिरूप है। इसलिये इसमें शेष ग्यारह अविरतियाँ नहीं होती। इसमें प्रत्याख्यानावरण कषाय असुष्क, जिसका उदय पाँचों गुणस्थान पर्यन्त ही रहता है, नहीं होता। इस तरह पांचवें गणस्थान-सम्बन्धी उत्तानोस हेतुकों में से पन्द्रह घटा बेने पर रोज चौबोस रहते हैं। ये चौबीस तथा आहारक-द्वि फ, फुल छब्बीस हेतु छठे गुणस्थान में हैं। इस गुणस्थान में चतुर्दशपूवं चारो मुनि आहारकलब्धि के प्रयोग द्वारा श्राहारकशरीर रखते हैं इससे छबीस हेतुओं में आहारक-विक परिगणित है ।