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पर्मग्रन्थ भाग चार
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क्रियशरीरके प्रारम्भ और परित्यागके समय वैक्रियमिभ तथा माहारकशरीरके भारम्भ और परित्यागके समय माहारकमिभ-योग होता है, पर उस समय प्रभस-भाव होने के कारण सातवां गुणवान नहीं होता। इस कारण इस गुणस्थानके पन्ध हेतुभोंमें ये दो योग नहीं गिने गये हैं।
वैफ्रियशरीरबालेको वैकियकाययोग और आहारकशरीरपालेको माहारककाययोग होता है। ये दो शरीरवाले अधिकसे अधिक सातवें गुणवानके ही अधिकारी है। आगेके गुणस्थानोंके नहीं। इस कारण पाळचे गुणस्थानके बन्ध-तुमोमें इन दो योगोंको नहीं गिना है ॥५५, ५६, ५७॥ मछहास सोल यायरि, सुहमे दस धेयसंजलणति विषा। वीणुवसति प्रलोभा, सजोगि पुष्बुस सगजोगा ॥२८॥
अपहागः पोडश बादरे, सूक्मे दश बेरसंज्वलननिकादिना । क्षीणोपशान्तेऽलोभाः, सयोगिनि पूर्वोक्तास्ससयोगाः ॥१८॥
अर्थ----अनिवृसिथाररसंपरायगुस्थान में हास्य पटकके सिवाय पूर्वोक वाईसमेसे शेष सोलह हेतु है। सूक्ष्मसंपरायगुणयाममें तीमवेद और तीन संव्यसन (लोमको मेड़कर)के सिवाय इस हेतु है। उपशान्तमोह तथा क्षीणमोह-गुस्थानों में संज्वखमलोभके सिवाय मी हेतु तथा सयोगिकेवलीगुणसानमै सास हेतु है जो सभी पोगरूप हैं। ___ भावार्थ-हास्य-पदकका उदय आठवेसे भागेके गुणस्थानों में नहीं होता; इसलिये उसे छोड़कर आठवे गुणस्थानके वासि तुओंमें से शेष सोलह देतु भौचे गुणस्थानमें समझने चाहिये। .. तीन वेद तथा संज्वलन-क्रोध, मान और माया, इन छहका उदय नौधै गुणस्थान तक ही होता है, इस कारण इन्हें छोड़कर शेष दस हेतु दस गुणहानमै कहे गये हैं।