________________
१६६
कर्मग्रन्थ भाग चार
मत्त-अवस्था-मावी है। इसलिये उसमें छठे गणस्थान वाले तेरह योगों में से उक्त दो योनी छोड़कर मर रोग लगे हैं : बैंक्रियशरीर या आहारक शरीर बना लेने पर अप्रमत्त-अवस्था का भी संभव हैं। इसलिये अप्रमत गणस्थान के योगों में बैंपिकाययोग और आहारककाययोग की गणना है।
सयोगिकेवलो को केवलिसमुद्घात के समय कामण और औदारिकमिश्न, ये वो मोग, अन्य सब समय में औचारिककाययोग, अनुप्सरविमानवासी चेव आदि के प्रश्न का मन से उत्तर देने के समय बो मनोयोग और देशना के देने समय दो प्रचन योग होते हैं। इससे सेरहवें गण स्थान में सात योग माजे गये हैं।
केवली भगवान् सब योगों का निरोष करके अयोगि-अवस्था प्राप्त करते हैं। इसीलिये चौदहवे गुण स्थान में योगों का अभाव है ॥४७ ।।