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कर्मग्रन्थ भाग चार
परिशिष्ट "" | पृष्ठ ८५, पति ११ के 'अवमिवन' शब्द पर
अवधिदर्शन और गुणस्थान का सम्बन्ध विचारने के समय मुख्यतया दो बातें जानने की है, (१) पक्ष-भेद और (२). उनका तात्पर्य ।
- (१) पक्ष-भेद । प्रस्तुत विषय में मुख्य दो पक्ष हैं:-क) कार्मप्रन्थिक और (ख) संद्धान्तिक ।
(क। कामंग्रन्थिक-पक्ष भी दो हैं । इनमें से पहसा पक्ष चौथे आदि नौ गुणस्थानों में अधिदान मानता है। यह पक्ष, प्राचीन चतुर्थ कर्मग्रन्थ की २६वी गाथा में निर्दिष्ट है, जो पहले तीन गुणस्थानों में अज्ञान मानने वाले को कोई ना , ही सरे आदि दस गुणस्थानों में अवधिदर्शन मानता है। यह पक्ष आगे की ४८वी गाथा में तथा प्राचीन चतुर्थ कर्मग्रन्थ की ७०दी ब ७१वीं गाथा में निर्दिष्ट है, जो पहले दो गुणस्थान तक अशाम माननेवाले कार्मग्रथिकों को मान्य है। ये दोनो पक्ष, गोम्मटसार जीवकान की ६९० और ७०४वीं गाथा में हैं 1- इनमें से प्रथम पक्ष, तत्स्वार्थ-अ० १के वे सूत्र की सर्वार्थ सिद्धि में भी है । वह यह है:"मषिवर्शने असंयतसम्पष्टिगानि बीचकवायाम्सामि ।"
(ब) संढान्तिक पक्ष विल्कुल भिन्न है । वह पहले आधि बारह गुणस्थानों में अवधिदर्शन मामता है । जो भगवती-सूत्रसे मालूम होता है । इस पक्ष को श्रीमलयगिरिसूरि ने पञ्चसंग्रह-बार १ की ३५वी गाथा की टीका में तथाप्राचीन चतुर्थ कर्मग्रन्प की २९वीं गापाको टीका में स्पष्टता से दिखाया है।
"मोहिसणसणगारोपनलागं भंते । कि नामी ममानी ? गोयमा ! गाणी वि ममापी FRI जा नाणी ते अस्गामा तिण्णाणो, अस्थगइमा बजगाणी । मे तिग्णाची, ते पाभिभिवोहियणानी सुयगाणी ओहिणाणी । मे परणागी ते मामिणियोहिममानो मुपगागी ओहिणामी मगपग्जवषाणी । ने अपाणी हे पियमा महामण्णागी मुयमबाणी विमंगनाणी ।"
मगवती-शतक ८, उद्देश २। (२)-उनका (उक्त पक्षों का) तात्पर्यः--