Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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कर्मग्रन्थ भाग चार
१२७
सिद्धों से भी अनन्त गुण हैं और वे सभी
मति-अज्ञानी सधर
भुस-अज्ञानी हो हैं अत एष मति अज्ञानी तथा भुत अज्ञानी, घोनों का केवल ज्ञानियों से अनन्तगुण होना संगत है । मति और स ज्ञान की तरह मति और श्रुत- अज्ञान, नियम से सहचारी है, इसी से मति- अज्ञानी तथा श्रुत- अज्ञानी आपस में तुल्य है ।
सूक्ष्मसंपराय चारित्री उत्कृष्ट दो सौ से नौ सौ तक, परिहारविशुद्ध चारित्रो उत्कृष्ट वो हजार से नौ हजार तक और यथाख्यातचारित्र उत्कृष्ट वो करोड़ से नौ करोड़ तक हैं । अत एव इन तीनों प्रकार के चारित्रियों का उत्तरोतर संख्यात गुण गया है ।।४१।।
अल्प - बहुल्य माना
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समय संखा देस असंखगुण णंतगुण अजया । थोयअखदुता, ओहियण केवल अचषखू |४२॥
सामाथिका संख्या, देशा असंख्यगुणा अनन्तगुणा अथताः । ग्लोक।ऽसंमृष्णनन्दाप
अर्थ – छेवोपस्थापनीय चारित्र वाले यथाख्यात चारित्रियों से संख्यात गुण हैं। सामायिक चारित्र वाले देवोपस्थापनीय चारित्रियों से संस्पात गुण है। अधिरित वाले देशविरतों से अनन्त गुण हैं ।
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अवधिदर्शनी अन्य सब दर्शन वालों से है । चक्षुर्दशनी अधिवेशन वालों से असंख्शल गुण हैं । केवलदर्शनी अवंशेन वालों से अनन्तगुण हैं । अवशुर्दर्शनी केवल दर्शनियों से ही अनन्तगुण हैं । भावार्थ -- यथारुपात चरित्र वाले उत्कृष्ट वो करोड़ से नौ करोड़ तक होते हैं: छेदोपस्थापनीय चारित्र वाले उत्कृष्ट दो सौ करोड़ से नौ सौ करोड़ तक और सामाजिक चारित्र याने उत्कृष्ट दो हजार करोड़ से नौ हजार करोड़ तक पाये जाते हैं। इसी कारण ये उपर्युक्त रीति से संख्यातगुण माने गये हैं। तिर्यच भी बेशरित होते है; ऐसे तियंत्रच असंख्यात होते हैं । इसी से सामायिक चारित्रबालों से देशविरति वाले असंख्यातगुण कहे गये हैं । उक्त चारित्र