Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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कर्मग्रन्थ माग चार
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संज्ञी जीव असंज्ञी जीवों को अपेक्षा कम हैं और असंती जोध, उनसे अनन्तगुण हैं । अनाहारक जीव आहारक जीवों की अपेक्षा कम हैं और आहारक जोय, उनसे असंख्यातगुण हैं ॥ ४४ ॥
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भावार्थ मिश्रदृष्टि पाने वाले जीव वरे प्रकार के हैं। एक तो वे, जो पहले गुणस्थान को छोड़कर मिश्रष्टि प्राप्त करते हैं और दूसरे वे, जो सम्यष्टि से च्युत होकर मिश्रष्टि प्राप्त करते हैं। इसी से मिश्ररष्टिवाले औपशमिकसम्यग्दष्टिबालों से संख्यातगुण हो जाते हैं । मिश्रष्टालों से क्षायोपशमिकसम्यमष्टिवालों के संख्यातग ुण होने का कारण यह है कि मित्रसम्यक्त्वको अपेक्षा क्षयोपशमिकसम्यक्व की स्थिति बहुत अधिक है: मिश्रसम्यक्त्व की उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त की ही होती है, पर क्षायोपशमिकसम्यक्त्वको उत्कृष्ट स्थिति कुछ अधिक छयासठ सागरोपमकी । क्षायिकसम्यमत्वक्षायोपशमिकसम्य स्त्रियों से अनन्तग ुण हैं; क्योंकि सिद्ध अनन्त हैं और वे सब क्षाधिकसम्यक्त्व हो हैं । क्षायिकसम्यक्तिवयों से भी मिथ्यावियों के अनन्तगुण होने का कारण यह है कि सत्र वनस्पतिकाधिक जोय मिथ्यात्वो ही है और वे सिद्धों से भी अनन्तगुण है ।
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देव, नाक, गर्भज मनुष्य तथा गर्भज-तियंत्र हो संज्ञी हैं, शेष सब संसारी जीव असंज्ञी हैं, जिनमें अनन्त वनस्पतिकायिक जीवों का समावेश है। इसीलिये असंज्ञो जीव संज़ियों को अपेक्षा गुण कहे जाते हैं ।
अनन्त
और
सिद्ध
विग्रहगति में वर्तमान केवलिमुद्घात के तीसरे चौथे पाँच समय में वर्तमान, चौदहवें गुणस्थान में वर्तमान और ये सब जीव अनाहारक हैं; शेष सब आहारक हैं। इसी से अनाहारकों की अपेक्षा आहारक जीव असंख्यातगुण कहे जाते हैं। बनस्प तिकामिक जीव सिद्धों से भी अनन्तगण हैं और वे समो संसारी होने के कारण आहारक हैं। अन एव यह शङ्का होती है कि आहारक