Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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कर्मग्रन्थ भाग चार
अल्प- बहुस्व संस्थालपण कहा है। कापोललेश्या, अनन्तवनस्पतिकाfre जीवों को होती है, इसी सबब से कापोसलेइयावाले तेजोलेश्याबालों से अनन्तगुण कहे गये हैं। नीललेश्या, कापोतलेश्या वालों से भी अधिक १- लान्तक से लेकर गोंको अपेक्ष सनत्कुमार से लेकर ब्रह्मलोक तक के वैमानिकदेव असंख्य गुण हैं । इसी प्रकार सनत्कुमार आदि के वैमानिक देवों की अपेक्षा केवल ज्योतिषदेव ही असंख्यात गुण है । अत एव यह शङ्का होतो है कि पद्मलेश्या वाले शुक्लेश्मा बालों से और तेजलिया वाले पंद्मलेश्या वालों से असंख्शतगुण न मानकर संख्यातगुण क्यो माने जाते हैं ?
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इसका समाधान इतना ही है कि पद्मलेश्या देव शुल्कलेल्या वाले देवों से असंख्यातगुण है सही, पर पद्मलेश्या वाले देवों की अपेक्षा शुक्ललेश्या वाले तियंत्र असंख्यातगुण हैं। इसी प्रकार पद्मलेश्या वाले देवों से तेजोलेश्या वाले देवों के असंख्यातगुण होने पर भी तेजलेश्या वाले देवों से पलेइमाबाले तिर्यञ्च असंख्यातगुण है । अत एव सब शुक्ललेश्या वालों से सब पद्मश्यावाले इनसे सब तेजोलेश्यावाले संख्यातगुण ही होते हैं । सारांश, केवल देवों की अपेक्षा शुक्ल आदि उक्त तीन लेपमाओं का अन्य बहुत्व विचारा जाता, तब तो असंख्यातगुण कहा जाता; परन्तु यह अन्य बहुत्व सामान्य नीवराशि को लेकर कहा गया है और पद्ममावाले देवों से शुक्ललेश्यावाले तियेवों की तथा तेजोलेश्या वाले देवों से पलेश्यावाले तिर्यों की संख्या इतनी बड़ी है; जिससे कि उक्त संख्यातगुण ही अल्प-बहुत घट सकता है । श्रीजयम मोसूर ने शुक्ललक्ष्या से तेजोलेश्या तक का अल्पबहुत्व असं यातगुण लिखा है; क्योंकि उन्होंने गाथा - गत 'दो संस्था' पद के स्थान में 'दोऽसंस्था' का पाठान्तर लेकर व्याख्या की है और अपने दबे में यह भी लिखा है कि किसी-किसी प्रति में 'दो संखा' का पाठान्तर है, जिसके अनु सार संख्यातगुण +1 अल्प-बहुत्व समझना चाहिये, जो सुझोंकी विचारणीय दे 'दोखा' यह पाान्तर वास्तविक नहीं है। 'दो सखा' पाठ ही तथ्य है । इसके अनुसार सख्यातगुण अल्प-बहुत्व का शङ्का समाधान पूर्वक विचार, सुज्ञ श्रीमलयगिरिसूरि ने प्रज्ञापना के अपबहुत्व तथा लेश्यापथ को अपनी वृत्ति में बहुत स्पष्ट रीति से किया है । पृ० १६३३ |
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