________________
१२०
कर्मग्रन्थ भाग चर
बालों को छोड़ अभ्य सब जीव अविरत हैं, जिनमें अनन्तानन्त वनस्पतिकायिक जीवों का समावेश है। इसी अभिप्राय से अधिरत जीव देशविरति वालों की अपेक्षा अनन्तगुण माने गये हैं ।
देखों, नारको तथा कुछ मनुष्य तिर्यञ्चों को हो अवधिदर्शन होता है । इसी से अन्य वर्शन वालों की अपेक्षा अवधिदर्शनी अल्प है । सूर्यर्शन, चतुरिप्रिय, असंशि-पञ्चेन्द्रिय और संज्ञि-पचेत्रिय, इन तौमों प्रकार के जोवों में होता है। इसलिये चक्षुर्दर्शन वाले अवधिवर्शनियों की अपेक्षा असंख्यातगुण कहे गये हैं । सिद्ध अनन्त हैं और वे सभी केवलदर्शनी हैं, सी से उनकी संख्या चक्षुर्दर्शनियों की संख्या से अनन्तगुण है । अचशुदर्शन समी संसारी जीवों में होता है, जिनमें अकेले वनस्पतिकायिक जीव ही अनन्तानन्त है । इसी कारण अचक्षुर्दर्शन को केवलवर्शनियों से अनन्तगुण कहा है।
लेश्या आदि पांच मागणाओं का अल्प बहुत्व' | [ दो गाथाओं से 1]
पछाणविलेसा, थोवा दो संख गंत दो अहिया । अभवियर थोवणंता, सासण थायोवसम संखा ||४३|| पवचानुपूर्व्या लेश्याः स्तोका द्वे संख्ये अनन्ता अधिके । अमध्येतराः स्वोकानन्ताः, सासादना म्तोका उपशमाः संख्याः ॥४३॥
अर्थ - लेश्याओं का अल्पबहुत्व पचानुपूर्वी से पीछे की ओर से—जानना चाहिये । जैसे:-- शुल्कलेश्यावाले, अन्य सब लेश्यावालों से अल्प हैं । पालेश्याषाले शुल्कलेवयावालों से संख्यातगुण हैं। तेजोलेश्या वाले पद्मश्यावालों से संख्यातगुण हैं। तेजोलेश्यावालों से कापोतले श्यावाले अनन्तगुण हैं। कापोतलेश्यावालों से नीललेश्यावाले विशेषाधिक है। कृष्णले श्यावाले, नीललेश्यावालों से भी विशेषाधिक हैं । अभव्य जीव, भव्य जीवों से अल्प हैं । भव्य जीव अभय जीवों की अपेक्षा अनन्तगण हैं ।
1
3
भव्य मार्गणा का
·
१-- लेक्ष्या की अल्प बहुत्व प्रज्ञापना पू पू० १३६
१३५
1