Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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कर्मग्रन्थ भाग चार
सो इसलिये कि 'अम्बर' आदि श्रावक द्वारा वैफियलब्धि से वैश्यिशरीर बनाये जाने की बात शास्त्र में प्रसिद्ध है।
यथारपात चारित्र वाला अप्रमत्त ही होता है, इसलिपे उस चारित्र में दो पंक्रिय और दो आहारक, ये प्रमाव-सहचारी चार योग नहीं होते, शेष ग्यारह होते हैं । ग्यारहवें कार्मण और भौवा रिकमिश्र, ये दो योग गिने गये हैं, सो केवलि समुद्रात को अपेक्षा से । कैलिसमुद्रात के वूमरे, छठे और सातवे समय में औदारिकमिश्र और तीसरे, चौथे और पांचवे समय में कार्मणयोग होता है ॥२६॥
१--देखिये, औपचातिका पु. ६६ । २--देखिये, परिशिष्ट 'द ।'