Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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कर्मग्रन्थ भाग चार
( ६ ) - मार्गणाओं का अल्प - बहुत्व । [ आठ गाथाओं से ]
अहलाय सुलभकेवल - दुगि सुक्का लावि सेसठाणेसु । नरनिरयदेवतिरिया, थोवा दु असं स्वर्णतगुणा' ॥३७॥
यथारूपातसूक्ष्म केवल द्विके शुक्ला षडपि दोषस्थानेषु । नरनिरयदेवतिर्यञ्चः स्तोकव्यसख्यानन्तगुणाः ॥ ३७ ॥
अर्थ - यथाश्यातच्चारित्र, सूक्ष्मसंपरायचारित्र और केवल डिक, इस बार मागंगाओं में शुल्कलेश्या है; शेष मार्गास्थानों में छहों श्याएं होती है।
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[गतिमार्गणा का अल्प-बहुत्व:- ] मनुष्य सबसे कम हैं, नारक उससे असंख्यातगुण हैं, नारकों से देव असंख्यातगुण हैं और देवों से तिर्यञ्च अनन्तगुण हैं ।। ३७ ।।
भावार्थ - ययाख्यात आदि उपर्युक्त चार मार्गणाओं में परिणाम इतने शुद्ध होते हैं कि जिससे उनमें शुल्कलेश्या के सिवाय अन्य लेवा का संभव नहीं है। पूर्व गाथा में सत्रह और इस गाथा में यथास्यातचारित्र आदि चार, सब मिलाकर इक्कीस मार्गणाएं हुई।
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१- यहां से लेकर ४४वीं गाथा तक चौदह मार्गणामों में अल्प-बहुत्व का विचार है; वह प्रज्ञापना के अल्प- बहुत्व नामक तीसरे पद से उद्धृत है । है । उक्त पद में भागंणाओं के सिवाय और भी तेरह द्वारों में अल्पबहुत्व का विचार है । गति-विषयक अल्प-बहुत्व, प्रशापना के ११६ वें पृष्ठ पर है । इस अल्पबहुत्व का विशेष परिज्ञान करने के लिये इस गाथा को व्याख्या में मनुष्य आदि की सख्या दिखायी गयी है, जो अनुषोगद्वार में
वर्णित है: - मनुष्य संख्या, पृ० २०५ नारक - सख्या, पृ० १०६ असुरकुमार संख्या, पृ० २०० व्यन्तर सख्या, १०२०८, ज्योतिष्क- संख्या, पृ० २०८ वैमानिक संख्या | यहाँ के समान पञ्चसंग्रह में थोड़ा सा वर्णन है: -- व्यन्तर - संख्या, द्वा० २ ० १४; ज्योतिष्क - सख्या, द्वा० २, गा० १५ मनुष्य - संख्या, द्वा० २ ० २१ ।
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