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कर्मग्रन्थ भाग चार
पांचवें वर्ष के साथ छठे वर्ग को गगने से जो उन्तीस अङ्क होते हैं, ही यहाँ सेने चाहिये । जैसे:--२ को २ के साथ गुणो से ४ होते हैं, यह पहला वर्ग । ४ के साथ ४ को गुगने से १६ होते हैं, यह दूसरा वर्ग। १६ को १६ से गुमने पर २५६ होते हैं, यह तीसरा पर्ग। २५६ को २५६ से ग णमे पर ६५५३६ होते हैं, मह चौथा वर्ण । ६५५३६ को ६५५३६ से गुणमे पर ४२९४६६७२६६ होते हैं, यह पाचवा वर्ग । इसी पांचवें वर्ग को सङ्खया को उसी सजपा के सम्म गगने से १५४४६७४४०७३७०९५१६१६ होते हैं, यह छठा वर्ग । इस छठे मर्ग की संख्या को उपयुक्त पांच वर्ग की संख्या से गगने पर ७६२२८१६२५१४२६४३३७५६३५४३९५०३३६ होते हैं, ये उन्तीस अर' हए । अथवा १ का वूमा २, ३ का चूना ४. इस तरह पूर्व-पूर्व संख्या को, उत्तरोषा काय का दूना घरज से, ही उन्तीस भर होते हैं।
(3) उत्कृष्ट:-अब संमूरिजम ममुष्प पेवा होते हैं, तब एक साम अधिक से अधिक असंख्यात तक होते हैं, उसी समय मनुष्यों की उत्कृष्ट संख्या पायी जाती है । असंख्यात संख्या के असल्यास मेर हैं, इनमें से जो असंख्यात संपर मनुष्यों के लिये इष्ट है, उसका परिचय शास्त्र में काल' और क्षेत्र, दो प्रकार से किया गया है।
१--समान दो संख्या के गुणनफल को उस संख्या का धर्म कहते हैं । जैसे: -५ का वर्ग २५ ।
२-ये ही उन्तीस अङ्क. गर्भज-मनुष्य की संख्या के लिये अक्षरों के मंकेत द्वारा गोम्मटसार-जीवकाण्ड की १५७वीं गाथा मैं बसलाये हैं।
३-देखिये, परिशिष्ट थि ।'
४--कान से क्षेत्र अत्यन्त मुक्ष्म माना गया है । क्योंकि अंगुल-प्रमाण भूचि-श्रेणि के प्रदेशों की संख्या असंख्यात अवपिणी के ममयों के बरावर मानी हुई है।