Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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श्रीवीतरागाय नमः । श्रीवेवेन्द्रसूरिविरचित 'षडशीतिक' नामक
चौथा कर्मग्रन्थ ।
मंगल और विषय ।
नमिय जिणं जिलमग्गण, गुणठाणुख ओगजोगलेसाओ । बंधप्पबहुभावे, संखिज्जाई किमवि बुच्छं ॥ १ ॥ नत्वा जिनं जीवमागंणागुणस्थानोपयोगयोगले श्या: । बन्धाल्पबहुत्वभावान् संख्यादीन् किमपि वक्ष्ये ॥ १ ॥
अर्थ - श्रीजिनेश्वर भगवान् को नमस्कार करके जीवस्थान, मार्गणास्थान, गुणस्थान, उपयोग, योग, लेश्या, बन्ध, अल्पबहुत्व, भाव और संख्या आदि विषयों को में संक्षेप से कहूँगा ।। १ ।।
भावार्थ - इस गाथा में चौदह विषय संगृहीत हैं, जिनका विचार अनेक रीति से इस कर्मग्रन्थ में किया हुआ है। इनमें से जीवस्थान आदि दस विषयों का कथन तो गाथा में स्पष्ट ही किया गया है. और उदय, उदीरणा, सत्ता और बन्धहेतु, ये चार विषय 'वन्ध' शब्द से सूचित किये गये हैं ।