________________
कर्मरन्थ भाग चार
सासाबमसम्पपश्व में सात जीवस्यान कहे हैं, जिनमें से छह अपर्याप्स हैं और एक पर्याप्त । सूक्ष्म-ए केन्द्रिय को छोड़कर अन्य छह प्रकार के अपर्याप्त जीवस्थानों में सासाधनसम्यक्त्व इसलिये माना जाता है कि जब कोई औपशामिकसम्यक्रव वाला जीव, उस सम्यक्रवको छोड़ता हुमा बावर-एकेन्द्रिय, डोम्निय, त्रीस्चिय, चतुरिन्द्रिय, असंशि-पञ्चेन्द्रिय या संशि-पञ्धेन्द्रिय में जन्म प्रहण करता है, तब उसको अपर्याप्त-अवस्था में सासादनसम्यक्तव पाया जाता है। परन्तु कोई जीव औरमिकसम्यक्तव को वमन करता हुमा सूक्ष्म-एप्रियमें पचा नहीं होता, इसलिये उसमें अपर्याप्त-अवस्था में सासादमसम्यसव का संभव नहीं है । संशि-पञ्चेन्द्रिय के सिवाय कोई भी जीव, पर्याप्त अवस्था में सासावनसम्तवी नहीं होता। पयोंकि इस अवस्था में औपशामिकसभ्य रुष पाने वाले संझी ही होते हैं, दूसरे नहीं ॥१८॥