Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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फर्मग्रन्दमाग चार
(३)-मार्गणाओं में योग ।
[ छह गाथाओं से । ।
सनयरमीसअस, चमोसमणवाविउवियाहारा । उरलं मीसा कम्मण, इय जोगा कम्ममणहारे ॥२४॥ सत्येतरमिथासत्यमृपमनोवचो कुर्विकाहारकाणि । ओरारिक मिथाणि कामणमिति योगा: कामणमनाहारे ॥ २४॥
मयं-सरप, असत्य, मिश्र (सत्यासत्य ) और असत्यामृष, ये चार मेष मनोयोग के हैं। बचमयोग भी उक्त चार प्रकार का ही है। वैक्रिय, आहारक और औदारिक, ये सीन शुद्ध तथा ये ही तीन मिश्र और फार्मण, इस तरह सात भेद काययोग के है । सब मिलाकर पन्द्रह योग हुए ।
अनाहारक-अवस्था में कार्मण काययोग हो होता है ॥ २४ ॥
मनोयोग के भंवों का स्वरूपः
भावार्थ---( १ ) जिस मनोयोगहारा वस्तु का मथार्थ स्वरूप विधारा जाय; जैसे:-जीव तस्यापिकनय से नित्य और पर्याणथिकनय से अनित्य है, इत्यावि, वह 'सरयमनोयोग' है।।
(२) जिस मनोयोग से वस्तु के स्वरूप का विपरीत चिन्तन हो; जैसे:--जीव एक ही है या नित्य ही है, इत्या , वह 'असत्यमनोयोग है।
( ३ ) किसी अंश में यथार्थ और किसी अंश में अयथार्थ, ऐस मिश्रित चिन्सन, जिस मनोयोग के द्वारा हो, वह मिश्रमनोयोग है। जैसे:-किसी व्यक्ति में गुण-वौष धोनों के होते हुए भी उसे सिप