Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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कर्मग्रन्य भाग चार
योग नहीं होता । यह भो नियम नहीं है कि कार्मणाकाययोग के समय अनाहारक-अवस्था अवश्य होती है। क्योंकि उत्पत्ति क्षणमें कार्मणकाययोग होने पर भी जीव, अनाहारक नहीं होता, बल्कि वह उसी योग के द्वारा आहार लेता है. परन्तु यह तो नियम ही है कि जेल जीव को अनाहारक-अवस्था होती है, तब कार्मणकाययोग के सिवाय अन्य योग होता ही नहीं । इमोसे अमाहारक-मार्गणा में एक मात्र कामणकाययोग माना गया है ॥२४॥
नरगइणि दितसतणु-अचक्खुनरनपुकसायसंवुमगे । संनिछलेसाहारग,-भवमइमुओहिदगे सब्वे ॥२५॥ न रगतपञ्चेन्द्रि यत्र स तन्वनक्षनरनपुस ककषायस म्यवद्धिके । मंजिषङ्लेश्याहारकभव्यमितिश्रुतावविद्विवे सर्वे ॥२५॥
अर्थ—मनुष्यगति, पञ्चेप्रियजाति, प्रसफाय, काययोग, अचादर्शन, पुरुषवेद, नपूसकवेद, चार कबाय, क्षायिक तथा बायोपशमिक, ये दो सम्मकत्व, संजी, छह लेश्याएं, आहारक, भव्य , मतिमान श्रुतज्ञान और अवधि द्विक. इन छुट्बीस मार्गणाओं में सब पन्द्रहोंयोग होते हैं ।।२५॥
भावार्थ -उपर्युक्त छब्बीस मार्गणाओं में पन्द्रह योग इसलिये कहे गये हैं कि इन सब मार्गणाओं का सम्बन्ध मनुष्यपर्याय के साथ है और मनुष्यपर्याय सब योगों का सम्भव है ।
यपि कहीं-कहीं यह कथन मिलता है कि आहारकमार्गणा में कर्मणयोग नहीं होता, शेष घौदह योग होते हैं । किन्तु वह युक्तिसमत नहीं जान पड़ता; क्योंकि अन्म के प्रथम समय में, कार्मणयोग के सिवाय अन्य किसी योग का संभव नहीं है। इसलिये उस समय, कार्मण योग के द्वारा हो माहाकश्व घटाया जा सकता है ।
जन्म के प्रथम समय में जो आहार किया जाता है, उसमें गझमाण