Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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कर्मग्रन्थ माग बार
रस गुणस्थान की स्थिति तक-अन्त महत्तं तक के सात कर्म के उदयका अनुभव करता है, पौछ अवश्य तेरहवें गुणस्थान को पाकर छार कर्म के उदय का अनुमव करता है। इस अपेक्षा से साप्त के उपयस्थान को उत्कृष्ट का अन्तम:': कही है। चा: । स्वयस्थान, तेरहवे और चौवर्षे गुणस्थान में पाया जाता है क्योंकि इन वो गुणस्थानों में अघातिकर्म के सिवाय अन्य किसी कर्म का उदय नहीं रहता । इस उक्ष्यस्थान की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट, बेश- उन करोड़ पूर्व वर्ष की है ।
८. उदीरणास्थान । आठ का उदीरणास्थान, शायु को उदोरणा के समय होता है। आयु को उपोरमा पहले छह गुणस्थानों में होती है । अत एव यह उबीरणास्याम इन्हीं गुणस्थानों में पाया जाता है।
सात का उतीरणास्थान, उस समय होता है जिस समय कि आयु को उदीरणा रुक जाती है। आयु को उवीरणा तब रुक जाती है, जब बर्तमान आयु आलिका'-प्रमाण शेष रह जाती है। वर्तमान आयु को अन्तिम आवलिका के समय पहला, दूसरा, चौथा, पांचवा और छठा, ये पांच गुणस्थान पाये जा सकते हैं। दूसरे नहीं । अतएव सात के खदीरणास्थान का सम्मय, इन पनि गुणस्थानों में समझना चाहिये। तीसरे गुणस्थान में सात को उदोरणास्थान नहीं होता, क्योंकि मावलिका-प्रमाण आयु शेष रहने के समय, इस गुणस्थान का सम्भव ही नहीं है। इसलिये इस गुणस्थान में आठ काही उदीरणास्थान माना जाता है।
मह का उबीरणास्थान सातवें गुणस्थान से लेकर वसवें गुणस्थान की एक मालिका-प्रमाण स्थिति बाकी रहती है, तब तक
१- एक मुहूर्त के १. ६३, ७३, २१६ वें भाग की 'आलिका' कहते
है