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कर्मग्रन्थ भाग चार
स्तनाविश्मयकेशावि, मावाभाघसमन्वितम् । नपुसकं बुधाः प्राह, मोहानलसुदीपितम् ॥३॥
बाव चिन्ह के सम्बन्ध में यह कथन बहलता की अपेक्षा से है। क्योंकि कभी कभी पुरुष के चिन्ह, स्त्री में और स्त्री के चिन्ह, पुरुष में देखे जाते हैं। इस बात की सत्यता के लिये नीचे-लिखे उद्धरण देखने योग्य हैं:
"मेरे परम मित्र डाटर शिवप्रसाद, जिस समय कोटा हास्पिटल में थे (अब आपने स्वतन्त्र भेडिकस हाल खोलने के इरादे से नौकरी छोड़ दी है , अपनी आँखों देखा हाल इस प्रकार ज्यान करते हैं कि 'डाक्टर मेकबाट साहब के जमाने में ( कि जो उस समय कोटे में चीफ मेखिकल आफिसर पे ) ......... 'एक व्यक्ति पर मुथस्था ( अन्डर फस्रोफ़ार्म ) में शस्त्रचिकित्सा ( बापरेशन ) फरनी यो, श्रतएव उसे मूचित किया गया; देखते क्या हैं कि उसके शरीर में स्त्री और पुरुष दोनों के जिम्ह विद्यमान हैं । ये दोनों अवयव पूर्ण रूप से विकास पाए हुए थे । शस्त्रचिकित्सा किये जाने पर उसे होश में लाया गया, होश में आने पर उससे पूछने पर मालूम हुआ कि उसने उन दोनों अवयवों से पृथक् २ उनका कार्य लिया है, किन्तु गर्भाविक शंका के कारण उसने स्त्री विषयक अवयय से कार्य लेना छोड़ दिया है। यह व्यक्ति अब तक जीवित है।'
"सुनने में आया है और प्रायः सत्य है कि 'मेरवाड़ा शिस्ट्रिपट (Merwari District: में एक व्यक्ति के लड़का हुआ । उसने वयस्क होने पर एण्ट्रेन्स पास किया । इसी असे में माता पिता में उसका विवाह भी कर दिया, क्योंकि उसके पुरुष होने में किसी प्रकार की शंका तो थी हो नहीं; किन्तु विवाह होने पर मालूम हुआ कि वह पुरुषत्व के विचार से सर्वथा अयोग्य है। अतएव साक्टरी जांच करवाने पर मालूम हुआ कि यह वास्तव में यों है और स्त्री चिन्ह के