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कर्मग्रन्थ-भाग चार
नीले रंग के है कि जिससे
बादलों से ऐसा ईर्ष्या, असहिष्णुता
(२) अशोक वृक्ष के समान परिणाम आत्मा में उत्पन्न होता तथा माया-कपट होने लगते हैं; निलंन्लता आ जाती है; विषयों की लालसा प्रदोष हो पता होती है और सदा वह परिणाम 'मोललेश्या है ।
पौदलिक सुख को खोज की जाती है,
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(३) कबूतर के गले के समान रक्त तथा कृष्ण वर्ण के पुदलों से इस प्रकार का परिणाम आत्मा में उत्पन्न होता है, जिससे बोलने, काम करने और विचारने में सब कहीं वक्रता हो वक्ता होती है; किसी विषय में सरलता नहीं होती; नास्तिकता आती है और दूसरों को कष्ट हो, ऐसा भाषण करने की प्रवृत्ति होती है। वह परि णाम 'कापोतलेश्या' है ।
(४) तोते की च के समान रक्त वर्ण के लेश्या पुदग्लों से एक प्रकार का अश्मा में परिणाम होता है, जिससे कि मखता आ जाती है; पठता दूर हो जाती है; चपलता तक जाती है; धर्म में रुचि तथा वता होती है और सब लोगों का हित करने की इच्छा होती हैं, वह परिणाम 'तेजोलेश्या' है ।
(५) हल्दी के समान पीले रंग के लेया पुरग्लों से एक तरह का परिणाम आत्मा में होता है, जिससे क्रोध, मान आदि कषाय बहुत अंशों में मन्द हो जन्ते हैं, वित्त प्रशान हो जाता है, आत्म-संयम जितेन्द्रियता आ जाती है। किया जा सकता है; मितभाषिता और वह परिणाम 'पपलेश्या' है ।
(६) 'शुल्कलेश्या' उस परिणाम को समझमा चाहिये, जिससे कि आर्त-शव-ध्यान बंद होकर धर्म तथा शुल्क-ध्यान होने लगता है; मन,
वचन और शरीर को नियमित धनाने में रुकावट नहीं आती; कवाय उपशान्ति होती है और बीतराग भाव सम्पादन करने की भी अनु