Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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कर्मग्रन्थ भाग नार
(६) कषाय मार्गणा के भेदों का स्वरुपः - (१) 'क्रोध' वह विकार है. जिससे किसी की भली. बुरी बात सहन नहीं की जाती या नाराजी होती है। (२) जिस दोष से छोटे-बड़े के प्रति उचित नत्रभाष नहीं रहता था जिससे ऐंठ हो वह 'मान' है। ऊपर पृषचिन्ह नाम मात्र को बन गया . इसी कारण वह चिन्ह मिरर्थक है .-अतएव डाक्टर के उस कृत्रिम बिह को दूर कर देने पर उसका शुद्ध स्त्रीस्वरुप प्रकट हो गया और उन दोनों स्त्रियों (पुरुषरुपारी स्त्री और उसकी विवाहिता स्त्री) की एक ही व्यक्ति से शादी कर दी गई।' यह स्त्री कुछ समय पहिले तक जीवित बतलाई जाती है।"
--मानवसतिशास्त्र प्रकरण छा। यह नियम नहीं है कि ट्रम्पवेद और भाववेद समाा ही हो । ऊपर से पुरुष के चिन्ह होने पर भी भार से स्त्री वेद के अनुभव का सम्मव है । यथा:
"प्रारम र फेलिसंकुलरणारम्भे तया साहसप्रायं कान्तजयाय किश्चिदुपरि प्रारम्भि तभ्रमाः । खिम्ना पेन कटीतटी शिथिलता दोवंल्लिरुकम्पिरतम्, पक्षी मीलितमैक्षि पौषरस: स्त्रीण कुन: सिद्धति ॥१७॥'
--सुभापितम्लाहार विपरीत तत्रिमा इसी प्रकार अन्य वदों के विषय में भी विपर्यया राम्जव है, तयापि बहतकर दल और मात्र वेद में समानता--बार चिन्ह के अनुसार ही मानसिक विक्रिया--पाई जाती है।
- गोम्मटमार-जीवकाण्ड में पुरुष आदि वेद का लक्षण शल्य-न्युल्पति के अनुसार किया है ।
मा०२७२-५४ । १--कपायि शक्ति के लान-मन्द-गाव की अपेक्षा से श्रोधादि प्रत्येक पाय के अनन्तान्वन्धी आदि चार-चार भेद कर्म प्रन्थ और गोम्मटसार-जीवाई में समान है। किम् गोमदार में लेश्या की अक्षा से चौदह-बौदहू और आयु में बन्धाबध ी अशा से बीमबील भेद किये गये हैं। उनका विचार श्वेताम्बरी ग्रन्थों में नहीं देखा गया । इन भेदों के लिये देखिये, जी. गा० २६१ से २६४ तक ।