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कर्मग्रन्प भाप चार
स्वल्प ) रहता है. वह सूक्ष्मसम्परायसंयम' है । इसमें लोमकषाय उदयमान होता है। अन्य नहीं । यह संयम बसवें गुणस्थान वालों को होता है । इसके (क) 'संल्किश्यामानक' और (ख) 'विशुद्धयमानक' ये दो भेद हैं।
(क) उपशमणि से गिरने वालों को दसवें गुणस्थान की प्राप्ति के समय जो संयम होता है, यह 'संल्किश्यमानकसूक्ष्मसम्पर संयम है। क्योंकि पतन होने के कारण उस समय परिणाम संस्केश-प्रमान ही होते जाते हैं ।
(ख) उपशमणि या क्षपकणि पर चढ़ने वालों को बस गुणस्थान में जो संयम होता है, वही विशुद्धयमामकसूदय सम्पा६. संयम है। क्योंकि उस समय के परिणाम विशुधि-प्रधान ही होते है।
(५) जो संयम अथातथ्य है अर्थात् जिसमें कषाय का उदय-लेश भी नहीं है। वह 'यथाल्यातसंयम' है । इसके (क) 'छापस्थिक' और . (ख) 'बायस्थिक, ये दो मेव हैं।
(क) 'छानस्थिकपथाण्यात संयम' यह है, जो ग्यारहवें बारहवें गुणस्थान वालों को होता है । ग्यारहवें गुणस्थान की अपेक्षा गरहों गुणस्थान में विशेषता यह है कि ग्यारहवें में कषाय का उदय नहीं होता, उसकी सत्तामात्र होती है। पर बारहवें में तो कषाय को सत्ता भी नहीं होती।
(ख) अछामस्थिफयथाख्यातसंयम केलियों को होता है । सयोगी केवली का संयम ‘सयोगीयथाख्यात' और अमोगी केवली का संयम 'अयोगीयथास्यात' है।
(६) कर्मबन्ध-जनक आरम्भ-समारम्भसे किसी अंश में निवृत्त होना 'देशाविरतिसंयम' कहलाता है । इसके अधिकारी गृहस्थ हैं' ।।
१--श्रावक की दया का परिमाण:--मुनी सब तरह की हिंसा से मुक्त रह सकते हैं, इसलिये उनकी दया परिपूर्ण कही जाती हैं । पर गृहस्थ बसे रह नहीं सकाने; इसलिये उनकी दया का