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कर्मग्रन्थ भाग चार
परिशिष्ट "ख" ।
पृष्ठ १०, पंक्ति १८ के 'पञ्चेन्द्रिय' शब्द पर
जीव के एकेन्द्रिय आदि पांच भेद किये गये हैं, सो द्रव्येन्द्रिय के आधार पर क्योंकि भावेन्द्रियों तो सभी संसारी जीवों को पांचों होती हैं ।
यथाः
"अहवा पहुन्च लडिदियं पिपंचेंदिया सम्ये ॥२६६६॥" - विशेषावश्यक अर्थात् लब्धीन्द्रियकी अपेक्षा से सभी सारी जांव पञ्चेन्द्रिय हैं । "पंचेदि व्व बउलो, मरो ध्व सव्य-विस ओवलंभाओ ।" इत्यादि - विशेषावश्यक, ग० २००१ अर्थात् सव विषय का ज्ञान होने की योग्यता के कारण बकुल दक्ष मनुष्य की तरह पाँच इन्द्रियों वाला है ।
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यह ठीक है कि द्वीन्द्रिय आदि की भावेन्द्रिय एकेन्द्रिय आदि की भावेन्द्रिय से उत्तरोतर व्यक्त व्यक्ततर ही होती है । पर इसमें कोई सन्देह नहीं कि जिनको द्रव्येन्द्रियो पाँच पूरी नहीं हैं उन्हें भी भावेन्द्रियाँ तो सभी होती ही हैं। यह बात आधुनिक विज्ञान से भी प्रमाणित है । डा० जगदीशचन्द्र बसुकी खोज ने वनस्पति में स्मरण शक्ति का अस्तित्व सिद्ध किया है। स्मरण, जो कि मानसशक्ति का कार्य है, वह यदि एके न्द्रिय में पाया जाता है तो फिर उसमें अन्य इन्द्रियाँ जो कि मन से नीचे की श्रेणिकी मानी जाती है, उनके होने में कोई बाधा नहीं । इन्द्रिय के सम्बन्ध में प्राचीन काल में विशेष दर्शी महात्माओं ने बहुत विचार किया है, जो अनेक जैन ग्रन्थों में उपलब्ध है। उसका कुछ अंश इस प्रकार है :--
इन्द्रियाँ दो प्रकार की है. - ( १ ) द्रव्यरुप और (२) भावरुप | द्रव्येन्द्रिय, पुद्ग्ल-जन्य होने से जरूप है; पर भावेन्द्रिय, ज्ञानरूप है, क्योंकि वह चेतना शक्ति का पर्याय है ।
(१) द्रव्येन्द्रिय अङ्गोपाङ्क्ष और निर्माण नामकर्म के उदय-जन्य है । इसके दो भेद हैं:- (क) निर्वृत्ति और (ख) उपकरण ।
(क) इन्द्रियके आकार का नाम 'निवृत्ति' है निर्वृत्ति के भी (१) बाह्य और (२) आभ्यन्तर ये दो भेद हैं । (१) इन्द्रियके बाह्य