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कर्मग्रन्थ भाग चार
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परिशिष्ट ""
पृष्ठ २१ के क्रम मावों शब्द पर
छभस्थ के उपयोग कमभावी हैं, इसमें मतभेद नहीं है, पर केवली के उपयोग के सम्बन्ध में मुख्य तीन पक्ष है:
(१) सिद्धान्त- पक्ष, केवलज्ञान और केवलदर्शनको कमभावी मानता है इसके समर्थक श्रीजिनभद्रगणि क्षमाश्रमण आदि हैं ।
(२) दूसरा पक्ष, केवलज्ञान- केवलदर्शन, उभय उपयोगको सहभावी मानता है । इसके पोषक श्रीमल्लवादी तार्किक आदि हैं।
(तीसरा पक्ष उभय उपयोगोंका भेद न मानकर उनका ऐक्यमानता हैं। इसके स्थापक श्रीसिद्धसेन दिवाकर है।
तीनों पक्षोंकी कुछ मुख्य-मुख्य दलीलें क्रमशः नीचे दी जाती हैं:
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१ (क) सिद्धान्त (नगवती- शतक १८ और २५ के ६ उद्देश, तथा प्रज्ञापना-पद ३० ) में ज्ञान दर्शन दोनोंका अलग-अलग कथन है तथा उनका क्रम मावित्व स्पष्ट वर्णित है । ख) नियुक्ति | आ०नि०गा० २७७-९७६। में केवल ज्ञान- केवलदर्शन दोनोंका भिन्न-भिन्न लक्षण उनके द्वारा सर्व विषयक ज्ञान तथा दर्शनका होना और युगपत् दो उपयोगों का निषेध स्पष्ट बतलाया है। (ग) केवल ज्ञान- केवलदर्शन के भिन्न-भिन्न आवरण और उपयोगोंकी बारह संख्या शास्त्र में (प्रज्ञापना २६०३५ आदिमें जगह-जगह वर्णित है । (घ) केवलज्ञान और केवलदर्शन, अनन्त कहे जाते हैं, सो लब्धिको अपेक्षा से उपयोग की अपेक्षा से नहीं । उपयोगकी अपेक्षा से उनकी स्थिति एक समयकी है; क्योंकि उपयोगकी अपेक्षा से अनन्तता शास्त्रम नाही भी प्रतिपादित नहीं है । (ङ) उपयोगों का स्वभाव ही ऐसा है, जिससे कि वे क्रमशः प्रवृत्त होते हैं। इसलिये केवलज्ञान और केवलदर्शनको क्रमभावी और अलग-अलग मानना चाहिये ।
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२ (क) आवरण-क्षयरूप निमित्त और सामान्य विशेषात्मक विषय, समकालीन होने से केवलज्ञान और केवलदर्शन युगपत् होते हैं । ख) लायस्थिक उपयोगों में कार्यकारण भाव या पररपर प्रतिबन्ध्य-प्रतिबन्धक भाव घट सकता है. ज्ञायिक उपयोगों में नहीं; क्योंकि बोध-स्वभाव शरश्वत आत्मा, जब निरावरण हो, तब उसके दोनों क्षायिक उपयोग निरन्तर ही होने चाहिये । (ग) केवलज्ञान केवलदर्शनकी सादि-अपर्यवसितता, जो शास्त्र में कही है, वह भी युगपतृ पक्ष में ही घट सकती है; क्योंकि इस पक्ष में दोनों उपयोग युगपत् और निरन्तर होते रहते हैं। इसलिये द्रव्यार्थिकनयसे उपयोग-दुबके प्रवाहको अपर्यवसित (अनन्त) कहा जा सकता है। (घ) केवलज्ञान- केवलदर्शन के सम्बन्ध में सिद्धान्त में जहकहीं जो कुछ कहा गया है, वह सब दोनोंके व्यक्ति-भेदका साधक है, तमा वित्व का नहीं। इस लिये दोनों उपयोगको सहभावी मानना चाहिये ।