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कर्मग्रन्थ भाग चार
छह कर्मका बन्धस्थान बसवें ही गुणस्थान में पाया जाता है। क्योंकि उसमें आयु और मोहनीय, बो कर्मका घन्ध नहीं होता । इप्स बन्धस्थानको जघन्य तथा उत्कृष्ट स्थिति दस गुणस्थानको स्थितिके बराबर--जघन्य एक समय की' और उत्कृष्ट अन्लमुहर्त कीसमानी चाहिये ।
___एक फर्मका बन्धस्थान ग्यारहवें, बारहवें और तेरहवें, तीन गुणस्थानों में होता है । इसका कारण यह है कि इन गुणस्थानों के समय सातवेवनीयके सिवाय अन्य कर्मका पन्ध नहीं होता । ग्यारहवें गुणस्थानको मघन्य स्थिति हर समयको कार तेसाई न को उस्कृष्ट स्थिति नौ वर्ष-कम करोड़ पूर्व' वर्षकी है । अत एव इस बन्धास्थानको स्थिति, जघन्य समयमात्रकी और उत्कृष्द नौ वर्ष-कम करोड़ पूर्व वर्ष की समझनी चाहिये ।
६. सत्तास्थान ।। तीन ससास्थानोंमें से माठ का सत्तास्थान, पहले ग्यारह गुणस्थानों में पाया जाता है। इसकी स्थिति, अभष्यकी अपेक्षा से अमादि. अनन्त और भव्यको अपेक्षासे अनादि-सान्त है। इसका सपब यह है कि अभव्यको फर्म-परम्पराको जैसे आवि नहीं है, वैसे अन्त मी नहीं है। पर भव्यको कर्म परम्परा के विषय में ऐसा नहीं है। उसकी आदि तो नहीं है, किन्तु अन्त होता है।।
सातका सत्तास्थान केवल बारहवें गुणस्थान में होता है । इस १-अत्यन्त सूक्ष्म कियावाला अर्थात् सबसे जघन्य गतिबाला परमाणु जितने काल में अपने आकाश-प्रदेश से अनन्तर आकाश-प्रदेश में जाता है, वह काल 'समय' कहलाता है।
-तत्त्वार्थ अ० ४ सू० १५ का भाष्य । २-चौरासी लक्ष वर्ष का एक पूर्वाङ्ग और चौरासी लक्ष पूर्वाङ्ग का एक 'पूर्व' होता है ।
--लस्वार्थ अ०४, १५ का भाष्य ।