Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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कर्मग्रन्थ भाग चार
एक साथ पायो जाय, उनके समुदायको 'सत्तास्थान' जिन प्रकृतियोंकर उदय एक साथ पाया जाय, उनके समुद्र को 'उवयस्थान' क्षौर जिन प्रकृतियों की उदीरणर एक साथ पायो जाप, उनके समुदाय को 'धीरणास्थान' कहते है ।
५. बन्धस्थान |
उपर्युक्त चार स्थानों में से सात कर्म का बन्धस्थान, उस समय पाया जाता है जिस समय कि आयु का बन्ध नहीं होता | एक बार आयु का बन्ध हो जाने के बाद दूसरी बार उसका वध होने में जकय काल, अन्तर्मुहूर्त प्रमाण' और उत्कृष्ट फाल, अन्तर्मुहूर्त-कर्म करोड़ पूर्ववर्ष तथा छह मास कम तेलांस सागरोपम प्रमाण चला जाता है । अत एव कर्म के बन्धस्थान की स्थिति भी उतनी ही अर्थात् जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त प्रमाण और उत्कृष्ट असतं कम करोड़ तथा छह मास कम तेतीस सागरोपम प्रमाण समझनी चाहिये ।
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आठ कर्म का बन्धस्थान, आयु-बन्ध के समय पाया जाता है । आयु-बन्ध, जघन्य या उत्कृष्ट अन्तर्मुहूतं तक होता है, इसलिये आठ के बन्धस्थान की जघन्य या उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त -प्रमाण है।
१ - नो समय प्रभाण, दस समय प्रमाण, इस तरह एक एक समय बढ़ते बढ़ते अन्त में एक समय कम मुहूर्त - प्रमाण, यह सब प्रकार का काल अन्तर्मुहूर्त' कहलाता है । जघन्य अन्तर्मुहुत्तं नय समय का उकृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त एक समय कम मुहूर्त का और मध्यम अन्तर्मुहर्स दस समय, ग्यारह समय आदि बीच के सब प्रकार के काल का समझना चाहिये | दो घड़ी को - अड़तालीस मिनट को - 'मुहूर्त' कहते हैं ।
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२- दस कोटाकोटि पत्योपमका एक 'सागरोपम' और असंख्य वर्षो का एक 'पल्मोपम' होता है । --तत्त्वार्थ अ० ४ ० १५ का माष्य । ३:- जब करोड़ पूर्व वर्ष की आयु वाला कोई मनुष्य अपनी आयु के तीसरे भाग में अनुत्तर विमान की तेतीम सागरोपम प्रमाण आयु बाँधता है, तब अन्तर्मुहूर्त्त पर्यन्त आयुबन्ध करके फिर वह देव की आयु के छह महीने दोष रहने पर ही आयु बाँध सकता है, इस अपेक्षा से आयु के बन्ध का उत्कृष्ट अन्तर समझना ।