Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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ममग्नन्थ भाग चार
या सत्ताईसा झावि भाग माकी रहने पर हो परमय के आयु का बन्ध होता है।
इस नियम के अनुसार यदि जन्ध न हो तो अन्त में जब वर्तमान आमु, अन्तर्मुहूत-प्रमाण वाकी रहती है, तब अगले भव को आयु का बन्ध अवश्य होता है।
२. उदीरणा । उपयुक्त तेरह प्रकार के जीवस्थानों में प्रत्येक समय में आठ कमाँ की उबीरणा हुमा करती है । सात कमीं की उदारणा, आयु की उदीरणा न होने के समय-जीवन की अन्तिम आवलिका में--पायी जाती है। क्योंकि उस समय , आवलिकामात्र स्थिति शेष रहने के कारण वर्तमान ( उदयमान ) आघु को और अधिक स्थिति होने पर भी उवयमान न होने गो माग अगले गा आप को उतीरणा नहीं होती । शास्त्र में उबोरणा का यह नियम बतलाया है कि जो कर्म, उवय-प्राप्त है, उसकी उधारणा होती है, दूसरे की नहीं । और उदम-प्राप्त कर्म मी आवसिकामात्र शेष रह जाता है, तब से उसकी उदी रणा रुक जाती है।
१.-"उदयावलियाबहिरिल्ल दिहितो कसायग़हिया सहिएणं जोगकरणेणं दलियमाकढिय उदयपत्तदलियेण समं अणुभवणामुदीरणा ।"
___-.-कर्मप्रकृति-चूणि । अर्थात् उदय-आवलिकासे बाहर की स्थिति वाले दलिकों को कषाय सहित या कघायरहित योगद्वारा खींचकर- उस स्थिति से उन्हें छुड़ाकरउदय-प्राप्त दलिवों के माथ भोग लेना 'उदीरणा' कहलाती है।
इस कपन का तात्पर्य इतना ही है कि उदयावलिका के अन्तर्गत दलिकों को उदीरणा नहीं होती। अत एव वर्म की स्थिति भावलिकामात्र वाकी रहने वा समय उसकी उदीरणा का रुक जाना नियमानुकूल हैं ।