Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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इस अन्य के तीन विभाग है:-(१) जोवस्थान, (२) मागणास्थान और (३) गुणस्यान । पहले विभाग में जीवस्थान को लेकर आठ विषय का विचार किया गया है। यथा:-(१) गुणस्थान, (२) योग, (३) उपयोग, (४) लेश्या, (५) बन्ध, (६) उज्य, (७) उचोरणा और (6) सत्ता । दूसरे विभाग में मार्गणास्थान पर छह विषयों की विवेचना की गई है:(१) जीवस्थान, (२) गुणस्थान, (३) योग, [४) उपयोग, (५) लेश्या और (६) अल्पवस्व । तीसरे दिमाग में गुणस्थान को लेकर बारह विषयों का वर्णन किया गया है:--(१) जीवस्याल, (२) योग, (३) उपयोग, (४) लेण्या, (५) बनवहे. (६) अन्ध, (७) उबय, (८) उवीरणा, (६। सत्ता, (१०) अल्पमहत्व, (११) भाव और (१२) संख्यात आदि संख्या ।
१.. इन विषयों की संग्रह-गाधायें ये हैं:--
"नमिय जिणं वत्सन्चा, चउदसजिलठाणए सु गुणाणा । जोगुवांगो लेसा, बंधुदओदीरणा सत्ता |॥ १ ॥ सह मूल चउपमग्गण,---ठाणेसु बासट्टि उत्तरेसु च । जिअगुणजोगुवओगा, लेसणबहुं च छळाणा ।। २ ।। चउदसगुणेसु जिअजो, गुवोगलेसा प बंघहेऊ य ।
बंश्राइच अप्पा, बहु च तो भावसंलाई ।। ३ ।।"
ये गाथायें श्रीजीवविजयजी-कृत और श्रीजयसोमसूरि-कृत टवे में हैं। इनके स्थान में पाठान्तरबाली निम्नलिखित तीन गाथायें प्राचीन चतुर्थ कर्मअन्य हारिमद्री टीका, श्रीदेवेन्द्र सूरिकृत स्वोपज्ञ टीका और श्रीजयसोमसूरिकृप्त टबे में भी हैं:
"उदसजियठाणेसु, चउदसगुणठाणगाणि जोगा य । उपयोगले सबंधुद, ओदीरणसंत अपए ।। १ ।।