Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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गत माता
(३)-जीवस्थानों में उपयोग' ।
पर्याप्त संज्ञि-पञ्चेन्द्रिम में सभी उपयोग पाये जाते हैं। क्योंकि गर्भज-मनुष्य, जिनमें सब प्रकार के उपयोगों का सम्भव है, वे संशिपञ्चेन्द्रिय हैं 1 उपयोग बारह हैं, जिनमें पांच ज्ञान और तीन अज्ञान, ये आठ साकार (विशेषरूप ) हैं और चार वर्शन, ये निराकार ( सामान्यरूप ) हैं। इनमें से केवल ज्ञान और केवल वर्शन को स्थिति समयमात्र करे और शेष छानस्थिक दस उपयोगों की स्थिति अन्समुहूर्त की मानी हुई है।
"ममतां तत्रजाकार, द्वैधानामपि भूमहाम् । स्ट: शरीराण्यनियत:-संस्थानानीति तद्विदः ॥२५४१॥"
-लो० प्र०, स. ५। "मसुरंबुधिदिसुई,-कलावधयसष्णिहो हवे देहो । पुढवी आदि बउगह, तरुतसकाया अणेयविहा ।।२००॥"
-मीवकाण्ड । १-यह विचार, पचसं द्वा० १, गा० ८ में है।
२-छामस्थिक उपयोगों की अन्तर्मुहूर्त-प्रमाण स्थिति के सम्बन्ध में तस्वार्थ-टीका में नीचे लिखे उल्लेख मिलते हैं:"उपयोगस्थितिकालोऽन्तमहत्तंपरिणाम; प्रकर्षान्द्रवति ।"
-अ० २, सू० ८ की टीका। "उपयोगतोऽन्तमुहर्स मेव जघन्योत्कृष्टाभ्याम् ॥"
-अ० २, मुह की दीका । "उपयोगतस्तु त:याप्यन्तमुहर्तमवस्थानम् ।'
--म० २, सू० ६ की दीका । यह बात गोम्मटसार में भी उल्लिखित है:--
"मदिसुदओहिमणेहि य, सगसगविसये विसेसविण्णाणं । अंतोमुहत्तंकालो, उवजोगो सो दु साधारी ॥६७३॥