Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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वैसे ही धर्मानुसारी आदि उक्त पाँच प्रकार के आस्मा भी मार - काम के बैग को उत्तरोतर अल्प श्रम से जीत सकते हैं ।
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बौद्ध वस्त्र में दस संयोजनाएँ- बन्धन वणित हैं। इनमें से पाँच 'ओरंभागीय' और पाँच 'उद्भागीय' कही जाती हैं। पहली सोम संयोजनाओं का क्षय हो पर सोना होती है । इसके बाद राग, द्वेष और मोह शिथिल होने से सकदा - गाधी अवस्थर प्राप्त होती है। पांच औरंभागीय संयोजनाओं का नाश हो जाने पर औपपत्तिक अनावृत्तिधर्मा किंवा अनागामीअवस्था प्राप्त होती है और दसों संघोजनाओं का नाश हो जाने पर अरहा पर मिलता है । यह वर्णन जंनशास्त्र-गत कर्म- प्रकृतियों के क्षय के वर्णन जैसा है । सोतापन्न आदि उक्त चार अवस्थाओं का विचार चौथे से लेकर चौदहवें तक के गुणस्थानों के विचारों से मिलता-जुलता है अथवा यों कहिये कि उक्त चार अवस्थाएं चतुर्थ आदि गुणस्थानों का संक्षेप मात्र हैं ।
जैसे जंन शास्त्र में लब्धिका तथा वर्णन है, से ही मौख शास्त्र में भी सिद्धियों का वर्णन है, जिनको उसने 'अभिता' जाएं छह हैं, जिनमें पाँच लौकिक और गयी है ।
योगदर्शन में योगविभूति का माध्यात्मिक विकास कालोन करते हैं । ऐसी अमिएक लोकोत्तर कही
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( १ ) सककार्यादिदिउ, (२) विचिकिच्छा, ( ३ ) सी लब्बत परामास, ( ४ ) कामराग, (५) पटी, (६) रूपराग ( ७ ) अरूपराग ( ) मान, (e) उद्धन्त्र और (१०) अविज्जा ।
मराठीभाषान्तरित दीघनिकाय, पृ० १७५ टिप्पणी । + देखिये - मराठी भाषान्तरित दोघनिकाय पू० १५६ ।