Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पाय विभागों में विभाजित है। इनके नाम इस प्रकार हैं:-(१) धर्मानुसारी, ( २ ) सोतापल ( ३ ) सकवरगामी. ( ४ ) अनागामी और ( ५ ) अरहा । ( १ ) इनमें से 'धर्मानुसारो' या 'श्रद्धानुसारी' बह कहलाता है, जो निर्वाणमार्ग के अर्थात् मोक्षमार्ग के अभिमुख हो, पर उसे प्राप्त न हुआ हो । इसी को जमशास्त्र में 'मार्गानुसारौं' कहा है और उसके पैतीस गुण बतलाये हैं। (२) मोक्षमार्ग को प्राप्त किये हुए मारमाओं के विकास की पूनाषिकता के कारण सोतापस आदि धार विभाग हैं । जो मारमा अविनिपातधर्मा निमत और सम्बोषिपरायण हो, उसको 'सीतापन' कहते हैं । सोतापन आत्मा सातवें जन्म में अवश्य निर्शण पाता है। (३) 'सकवागामी' उसे कहते हैं, जो एक ही शर इस लोक में अम्म ग्रहण करके मोक्ष जानेवाला हो । (४) जो इस लोक में जन्म ग्रहण म करके ब्रह्म लोक से सीधे हो मोक्ष नामेवाला हो, वह 'अनागामी' कहलाता है । (५) जो सम्पूर्ण यात्रवों का क्षय करके कृतकार्य हो जाता है। उसे 'थरहा' । कहते हैं।
धर्मानुसारी आदि उक्त पोष अवस्थाओं का वर्णन मनिझमनिकाय में बहुत स्पष्ट किया हुआ है । उसमें वर्णन किया है कि तत्कासात वत्स, कुछ बड़ा किन्तु भुल वत्स, प्रौढ़ बस्स, हल में जोतने लायक बलवान् बैल और पूर्ण वृषभ जिस प्रकार उसरोत्तर अस्प-अरूप श्रम से गङ्गा नदी के तिरछे प्रवाह को पार कर लेते हैं,
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* देखिये, श्रीहेमचन्द्राचार्य-कृत योगशास्त्र, प्रकाश १ । + देखिये, प्रो. राजवाड़े संपादित मराठीभाषान्तरित दीघ
निकाय, प० १७६ टिप्पनी । + देखिये, पृ० १५६ ।