Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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मनुभव करता है, पैसे हो सभ्यत्व से गिरकर मिथ्यात्व को पाने तक में प्रति बीच में आत्मा एक विलक्षण प्राध्यात्मिक अवस्था का अनुभव करता है। यह बात हमारे इस व्यावहारिक अनुभव से भी सिद्ध है कि जब किसी निश्चित उन्नत-मवस्या से गिरकर कोई निश्चित अवनत-अवस्था प्राप्त की जाती है, तब बीच में एक विलक्षण
स्थति खड़ी होती है।
तीसरा गुणस्थान आत्मा को उस मिश्रित अवस्था का नाम है, जिसमें न तो केवल सम्यक् दृष्टि होती है और न केवल मिथ्या हष्टि, किन्तु आत्मा उसमें दोलायमान आध्यात्मिक स्थितिवाला बन जाता है । अत एवं उसकी बुद्धि स्वाधीन न होने के कारण सम्बेहशोल होती है अर्थात् उसके सामने जो कुछ आया, वह सब सम् । अर्थात न तो वह तस्व को एकान्त अतत्वरूप से ही जानती है और न तश्वअतस्व का वास्तविक पूर्ण विवेक ही कर सकती है।
कोई उस्क्रान्ति करने वाला आत्मा प्रथम गुणस्थान से निकलकर सोधे ही तोसरे गुणस्थान को प्राप्त कर सकता है और कोई अप. कान्ति करने वाला आत्मा भी चतुर्थ शादि गुणस्थान से गिरकर तीसरे गुणस्थान को प्राप्त कर सकता है । इस प्रकार उत्क्रान्ति करने वाले और अपक्रान्ति करने बाले-बोनों प्रकार के आत्माओं का आश्रय-स्थान तीसरा गुणस्थान है। यही तीसरे गुणस्थान की दूसरे गुणस्पाम से विशेषता है।
ऊपर आत्मा की जिन ग्रोवह अवस्थाओं का विचार किया है, उमका तथा उनके अन्तर्गत अवान्तर संघातीत अवस्थाओं का महत संक्षेप में वर्गीकरण करके शास्त्र में शरीरधारी आत्मा को सिर्फ तीन अवस्थाएं मतलाई है-(३) बहिरात्म-अवस्था, (२) अन्तरात्म. अवस्था और (३) परमात्म-अवस्था।
पहलो अवस्था में मात्मा का वास्तविक-विशुद्ध रूप अत्यन्त