Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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भाष या शुभभावपूर्धक की जाने वाली क्रिया है । पातञ्जलयान में चित्त को वृत्तियों के निरोध को योग + कहा है । उसका भी वही मतसब है, अर्थात् ऐसा निरोध मोक्ष का मुख्य कारण है, क्योंकि उसके साथ कारण और कार्य-रूप से शुभ भाव का अवश्य सम्बन्ध होता है।
योग का आरम्म कब से होता है? :-आत्मा अनादि काल से जन्म मृत्यु-के प्रवाह में पड़ा है और उसमें नाना प्रकार के व्यापारों को करता रहता है । इसलिये यह प्रश्न पैदा होता है कि उसके व्यापारको कम से योग स्वरूप माना गया । इसका उत्तर शास्त्र में यह दिया गया है कि जब तक आत्मा मिथ्यात्व से व्याप्त युद्धिवाला, अत एवं विमूढ की तरह उल्टी दिशा में गति करने वाला अर्थात् आरम-- लक्ष्य से भ्रष्ट हो, तब तक उसका व्यापार प्रणिधान अवि शुभ-भाव * : प्रणिधानं प्रवृत्तिश्च, तथा विघ्नजयस्निया । सिद्धिश्न विनियोगश्च, एते कर्मशुमायामाः ।। १० ।।" 'एतैराशययोगैस्तु, विना धर्माय न क्रिया । प्रत्युत प्रत्यपायाय, लोभमोक्रिया यथा ॥ १६॥"
-योगलक्षणहाधिशिका। 1योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः । —पातजससूध, पान १, सू० । 1 "मुख्यत्वं चान्तरङ्गत्यात, फलाक्षेपाच्च दशितम् ।
च रमे पुद्गलावते, यत एतस्म संभवः ॥ २ ॥ न सम्मार्गाभिमुख्यं स्या,-दावर्तेषु परेषु तु।। मिथ्यात्वच्छन्नबुद्धीना, दिड् 'मूढानामिवाङ्गिनाम् ॥ ३ ॥
-योगलक्षणवात्रिविका ,