Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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है और यही अपुनरावृत्ति-स्थान है । क्योंकि संसार का एकमात्र कारण मोह है। जिसके सब संस्कारों का निशेष नाबा हो जाने के कारण अब उपाधिका संभव नहीं है।
यह कथा हई पहिले से चौदहवे गुणस्थान तक के बारह गुणस्थानों को इसमें दूसरे और तीसरे गुणस्थान को कथा जो छूट गई है, वह यो है कि सम्यक्त्व किंवा तत्वज्ञानवालो ऊपर की चतुर्थी आदि भूमिकाओं के राजमार्ग से च्युत होकर जब कोई प्रास्मा तस्वशान शून्य किंवा मिथ्यारष्टि वाली प्रथम भूमिका के उन्मार्ग की ओर झुकता है, तर बीच में उस अधःपतनोन्मुख आस्मा को भी कुछ अवस्था होती है, वही दूसरा गुणस्थान है । यद्यपि इस गुणस्थान में प्रथम गणस्थान की अपेक्षा आत्म-शुद्धि वाय कुछ अधिक होती है, इसीलिये इसका नम्बर पहले के भाव रखा गया है, फिर भी यह बात ध्यान में रखनी चाहिये कि इस गुणस्थान को उस्क्रान्ति-स्थान नहीं कह सकते । क्योंकि प्रथम गुणस्थान को छोड़कर उत्क्रान्ति करनेपाला आस्मा इस वूसरे गुणस्थान को सीधे तौर से प्राप्त नहीं कर सकता, किन्तु ऊपर के गुणस्थान से गिरने वाला हो आत्मा इसका अधिकारी बनता है। अपापसन मोह के जनेक से होता है । अत: एष इस गणस्थान के समय मोह की तीव्र काषायिक शक्ति का आणि मांव पाया जाता है । खोर आदि मिष्ट भोजन करने के बाद जब वमन हो जाता है, सब मुख में एक प्रकार का विलक्षण स्वाव अर्थात् न अति मधुर न अति-अम्ल जैसे प्रतीत होता है । इसी प्रकार धूसरे गुणस्थान के समय आप्यात्मिक स्थिति विलक्षण पाई जाती है। क्योंकि उस समय श्रात्मा न तो तत्त्वज्ञान की मिश्षित भूमिका. पर है और न तस्व-ज्ञान-शून्य निश्चित भूमिका पर। अथवा से कोई व्यक्ति चड़ने को सीढ़ियों से खिसक कर जम सक जमीन पर भाकर नहीं ठहर जाता, तब तक बीच में एक विलक्षण अवस्था का