Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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इंद्रद्युम्न
प्राचीन चरित्रकोश
इंद्रवर्मन्
२. कृतयुग का विष्णुभक्त राजा । इसकी राजधानी ७. धर्मराज जब बकदाल्भ्य के यहां गया था तब उजयिनी थी। यह ओद् देश के पुरुषोत्तम क्षेत्र में उसने अन्य ब्राह्मणों सहित इसका सम्मान किया। पांडव जगन्नाथ जी के दर्शन के लिये गया, तब जगन्नाथ रेत में | इस समय द्वैत वन में थे (म. व. २७.२२)। गुप्त हो गये । तब यह नीलाद्रि पर जा कर प्रायोपवेशन | ८. विष्णु पुराण के अनुसार नाभि वंश के सुमति का करनेवाला था कि, दर्शन होगा, ऐसी आकाशवाणी हुई। पुत्र । इसने अश्वमेध कर नृसिंह का उत्कृष्ट मंदिर बनवाया। इंद्रद्यम्न भाल्लवेय वैयाघ्रपद्य-अग्निवैश्वानर का इसने नारद ने लायी हुई नृसिंह की मूर्ति की स्थापना | क्या धर्म है, इसके बारे में अन्य पुरोहितों के साथ यह ज्येष्ठ शुक्ल द्वादशी के दिन स्वाति नक्षत्र के समय की। सहमत नहीं होता था। अश्वपति कैकेय ने इसे विद्या दी राजा को स्वप्न में नीलमाधव के दर्शन हुए। आकाशवाणी | थी (छां. उ. ५.११.१, १४.१)। भाल्लवेय को धर्मविधि हुई कि, समुद्र में जड वाली एक सुगंधित वृक्ष की चार | में मान है। मूर्तियां बनाओ १. विष्णु, २. बलराम, ३. सुदर्शन इंद्रमि --एक ऋषि (म. शां. २४०.१८ कुं.)। (रक्तवर्ण), ४. सुभद्रा ( केशरिया), तदनुसार वै. शु. इंद्रधन्वन्--बाणासुर एवं लोहिनी का पुत्र। अष्टमी को पुण्यनक्षत्र के समय उसने मूर्तियों की स्थापना की। इंद्रपाल--ब्रह्महोमवंशी हविर्होत्र राजा का पुत्र । (स्कंद. २.२.७-२९) । समुद्र पर से बह कर आने वाली इसका पुत्र माल्यवान् । इसने इंद्रवती नगर बसाया (भवि. लकड़ियों में से विशेष महत्वपूर्ण लकड़ियों से मूर्ति बनाने के | प्रति. ४.१)। लिये इसे दृष्टांत हुआ। एक लकड़ी से कृष्ण की काले रंग | इंद्रपालित-(मौर्य, भविष्य.) ब्रह्मांडमतानुसार की, बलराम की सफेद रंग की तथा सुभद्रा की पीले रंग | बंधुपालित का पुत्र । की मूर्ति बना कर, इसने जगन्नाथपुरी में उनकी स्थापना इंद्रप्रमति--पैल ऋषि का शिष्य । पैल ने, उसे ज्ञात की (नारद. २.५४; ब्रह्म. ४४-५१)।
ऋग्वेद के दो भाग कर एक भाग इंद्रप्रमति को सिखाया । ३. मगध देश का राजा। इसकी स्त्री का नाम | इसे मांडुक्य नामक एक शिष्य था (व्यास देखिये)। अहल्या । वह इंद्र नामक ब्राह्मण के साथ व्यभिचार | इंद्रप्रमति वासिष्ठ--वसिष्ठकुल का एक ऋषि । :करती थी। उसे अनेक दंड दिये। अंत में उसका स्थूल | ऋग्वेद में इसकी दो ऋचायें तथा एक सूक्त है (ऋ. ९.
शरीर जला देने पर भी, उसकी मानसिक तन्मयता नष्ट | ९७.४-६, १०.१५३)। चंद्रसंपति इसका पाठभेद है। नहीं हुई (यो. वा. ३. ८९-९०)।
कुणीति इसका नामांतर था। वसिष्ठ तथा घृताची का ४. पांड्य देश का राजा । यह एक बार तप कर रहा पुत्र । पृथु की कन्या इसकी स्त्री थी (ब्रह्माण्ड ३. ९, ८- था तब वहां अगस्त्य ऋषि आये परंतु ध्यानस्थ राजा उन्हें | १०)। यह श्रुतर्षि था। मंत्रकार भी था (वायु. ५९.
देख न सका इस कारण, मुनि को क्रोध हुआ। उसने, | १०५-१०६; ब्रह्माण्ड, २.३२. ११५-११६)। इसे इंद्र- 'तू मत्त हो गया है इसलिये मदोन्मत्त हाथी हो' ऐसा प्रतिम भी कहते है। कापिंजल्य, त्रिमूर्ति इसके नामांतर
उसे शाप दिया जिसे सुन कर राजा ने उनकी प्रार्थना | है। इसका पुत्र भद्र । की। तब उसने उश्शाप दिया कि, मगर जब तुझे पानी | इंद्रबाहु-दृढस्यु का नामांतर (मत्स्य. १४५. में पकडेगा तब विष्णु के द्वारा तेरी मुक्ति होगी। देवल | ११४)। यह अगस्त्य गोत्र का मंत्रकार था। विधमवाह मुनि के शाप से हह नामक गंधर्व त्रिकट पर्वत के | इसे नामांतर है। सरोवर में मगर बनकर रहता था। उसने इस हाथी को | इंद्रभू काश्यप-मित्रभू का शिष्य । इसका शिष्य पानी में पकड़ा । विष्णु ने तब उस मगर को मार कर | अग्निभू (वं. वा. २)। हाथी को मुक्त किया (प. उ. १३२, भा. ८-४; इंद्रमात देवजामि-एक सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०. आ. रा. सार. ९)।
१५३)। ५. (सो. निमि.) इसे ऐंद्रद्युम्न नामक एक पुत्र था । इंद्रमालिन्-उपरिचर वसु का नामांतर । ६. रुक्मी के पक्ष का एक क्षत्रिय । रुक्मिणीस्वयंवर इंद्रवर्मन्--भारतीय युद्ध में दुर्योधनपक्षीय राजा। के समय कृष्ण ने इसे सुदर्शन चक्र से मारा (म. स. | इसके पास अश्वत्थामा नामक नामांकित हाथी था। यह ६१. ६ कुं.)।
मालवा का राजा था (म. द्रो. १९१; द्रोण देखिये)।
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