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दसवां छींटावाले, पटियाला रियासत, ग्यारहवां फिर पूज्य मोतीराम जी महाराज के साथ नालागढ़, बारहवां माछीवाड़ा, तेरहवां पटियाला शहर, चौदहवां रायकोट शहर, पन्द्रवां फरीदकोट, सोलहवां पटियाला, सत्रहवां मलेरकोटला, अट्ठारहवां अम्बाला शहर, उन्नीसवां संवत् १९५२ में लुधियाना में ही किया ।
इस समय श्री आचार्य-वर्य, क्षमा के सागर श्री पूज्य मोतीराम जी जंघा बल क्षीण होने के कारण लुधियाना शहर में ही विराजमान हो गये । तब आपने श्री महाराज की सेवा करने के लिए संवत् १६५३ से १६५८ तक के सब चातुर्मास लुधियाना में ही किये । इन चातुर्मासों में जो कुछ धर्म - वृद्धि हुई, उसका वर्णन श्री पूज्य मोतीराम जी महाराज के जीवन-चरित्र में लिखा जा चुका है । जब आश्विन कृष्णा चतुर्दशी को श्री पूज्य मोतीराम जी महाराज का स्वर्गवास हो गया तब आपने चातुर्मास के पश्चात् श्रीश्रीश्री १००८ सोहनलाल जी महाराज को श्री १००८ आचार्य - वर्य मोतीराम जी की आज्ञानुसार आचार्य पद की चादर दी । उस समय श्री १००८ स्वामी लालचन्द्र जी महाराज पटियाला में ही विराजमान थे ।
इस कार्य से निवटने के बाद आपने अम्बाला, साढौरा की ओर विहार कर दिया । फिर आप साढौरा, अम्बाला, पटियाला, नाभा, मलेरकोटला, रायकोट, फीरोजपुर, कसूर और लाहौर होते हुए गुजरांवाला पधारे। वहां रावलपिण्डी वाले श्रावकों की ओर से अधिक आग्रह होने पर आपने वहीं के लिए विहार कर दिया । रास्ते में आप वज़ीराबाद, कुंजाह, जेहलम, रोहतास और कल्लर होते हुए रावलपिण्डी पहुंचे । इस वर्ष आपने अपने मुनिपरिवार के साथ यहीं चातुर्तास किया । इस चातुर्मास में और वर्षों की अपेक्षा अत्यधिक धर्मप्रचार हुआ । चातुर्मास के पश्चात् वहां से विहार कर मार्ग में धर्म-प्रचार करते हुए आप स्यालकोट पधारे । यहां भी बड़े समारोह से धर्म-प्रचार हुआ और यहां के श्रावकों का अत्यन्त आग्रह देख उनकी प्रार्थना स्वीकार करते हुए आपने १६६० का चातुर्मास स्यालकोट में ही किया । चातुर्मास के पहले आपने अमृतसर आदि क्षेत्रों में भी धर्मप्रचार किया । चातुर्मास के पश्चात् आप फिर अमृतसर में पधारे । इस समय वहां श्री आचार्य - वर पूज्य सोहनलाल जी महाराज, मारवाड़ी साधु श्री देवीदास जी महाराज तथा अन्य बहुत से साधु और साध्वियां एकत्रित हुए थे । इस समय गच्छ में बहुत सी उपाधियां वितीर्ण हुई और आपको 'श्रीमद् गणावच्छेदक स्थविर पद' से अलङ्कृत किया
गया ।
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