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षष्ठी दशा
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
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भवति । आरंभे से अपरिण्णाए भवति । से णं एयारूवेण विहारेण विहरमाणे जहन्नेण एगाहं दुयाहं तियाहं वा जाव उक्कोसेण सत्त मासे विहरेज्जा । से तं सत्तमा उवासग-पडिमा ।।७।।
अथापरा सप्तम्युपासक-प्रतिमा । सर्व-धर्म-रुचि-श्चापि भवति । यावद् राव्यपरात्र वा · ब्रह्मचारी | सचित्ताहारस्तस्य परिज्ञातो भवति । आरम्भस्यापरिज्ञातो भवति । स न्वेतद्रूपेण विहारेण विहरञ्जघन्येनैकाहं वा द्वयहं वा व्यहं वा यावदुत्कर्षेण सप्त मासान् विहरेत् । सेयं सप्तम्युपासक-प्रतिमा ।।७।।
पदार्थान्वयः-अहावरा-इसके अनन्तर सत्तमा-सातवीं उवासग-पडिमाउपासक-प्रतिमा प्रतिपादन करते हैं । इस प्रतिमा को ग्रहण करने वाले की सव-धम्म-सर्व-धर्म-विषयक रुई-रुचि यावि भवति होती है जाव-यावत् राओवरायं-दिन में और रात्रि में बंभयारी-ब्रह्मचारी रहता है । आरंभे-कृषि आदि पापपूर्ण व्यापार से-उसका अपरिण्णाए-परित्यक्त नहीं भवति-होता । से-वह एयारूवेण-इस प्रकार के विहारेण-विहार से विहरमाणे-विचरता हुआ जहन्नेण-कम से कम एगाह-एक दिन दुयाह-दो दिन तियाह-तीन दिन जाव-यावत् उक्कोसेण-उत्कर्ष से सत्त मासे-सात मास पर्यन्त विहरेज्जा-विचरण करे । सेतं-यही सत्तमा-सातवीं उवासग-पडिमाउपासक-प्रतिमा प्रतिपादन की है ।
मूलार्थ-इसके अनन्तर सातवीं प्रतिमा प्रतिपादन करते हैं । जो इस प्रतिमा को ग्रहण करता है उसकी सर्व-धर्म-विषयक रुचि होती है । वह दिन और रात सदैव ब्रह्मचारी रहता है । वह सचित्त आहार का परित्याग कर देता है, परन्तु आरम्भ (कृषि आदि व्यापार) का नहीं कर सकता । वह इस वृत्ति से कम से कम एक दो या तीन और यावत् उत्कर्ष से सात महीने तक विचरता है । यही सातवीं उपासक-प्रतिमा है |
टीका-इस सूत्र में सातवी प्रतिमा का विषय वर्णन किया गया है | जो इसको धारण करता है वह पहली प्रतिमा से लेकर छठी प्रतिमा तक के सम्पूर्ण नियमों का
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