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दशमी दशा
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
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सव्वालंकार-विभूसिए महती महालियाए कूडागार-सालाए महति महालयंसि सिंहासणंसि जाव सव्व राईए णं जोइणा ज्झियायमाणेणं इत्थि-गुम्म-परिवुडे महारवे हय-णट्ट-गीय-वाइयतंतीतल-तालतुडिय-घण-मुइंग-मद्दल-पडु-प्पवाइ-रवेणं उरालाई माणुसगाई काम-भोगाइं भुंजमाणे विहरति ।
ततोऽनन्तरं पुरतो महाश्वा अश्व-प्रवरा उभयतस्तेषां नागा-नाग-वराः पृष्ठतो रथा रथ-वराः संगेल्लिः (रथ-समुदायः) अथ च श्वेतमुद्धृतञ्छत्रमुद्गतं भृङ्गारं प्रतिगृहीतं तालवृन्तं वीज्यमानानि श्वेतचामराणि बाल-व्यजनानि, अभीक्ष्णमभीक्ष्णमतियान्ति, निर्यान्ति, सप्रभाः सपूर्वापरं स्नाताः कृत-बलिकर्माणो यावत्सर्वा-लङ्कार-विभूषिता महत्या महत्यां कूटाकार-शालायां महतो महति सिंहासने यावत्सर्वरात्रिकेन ज्योतिषा ध्मायमाने स्त्रीगुल्म-परिवृताः, महता रवेणाहत-नाट्य-गीत-वादित्र-तन्त्री-तलतालत्रुटित-घन-मृदंग-मईल-पटु-प्रवदितरवेणोदारान् मानुषकान् काम-भोगान् भुजाना विहरन्ति ।
पदार्थान्वयः-तदाणंतरं च णं-इसके अनन्तर उन उग्र-पुत्रादि के पुरओ-आगे महाआसा-बड़े-बड़े घोड़े आसवरा-श्रेष्ठ घोड़े तथा तेसिं-उनके उभओ-दोनों ओर नागा-हाथी और नागवरा-श्रेष्ठ हाथी पिट्टओ-पीछे रहा-रथ और रहवरा-प्रधान रथ तथा संगल्लि-रथों का समुदाय है से तं-और उन्होंने उद्धरिय-ऊंचा किया हुआ सेत छत्ते-श्वेत छत्र धारण किया अभुग्गयं भिंगारे-भृङ्गारी ली है पग्गहिय तालयंटे-तालवृन्त ग्रहण किया हुआ है सेय चामरा-श्वेत चमर और बालवीयणीए-छोटे-छोटे पंखे पवियन्न-डुलाये जा रहे हैं अभिक्खणं-२-बार-बार अतिजाति य-भीतर जाते हैं और निज्जाति य-बाहर निकलते हैं सप्पभा-कान्तिमान् हैं स पुवावरं च णं-पहले विधिपूर्वक ण्हाए-स्नान किया (कय) बलिकम्मे-बलिकर्म तथा भोजनादि क्रियाएं की जाव-यावत् सव्वालंकार-वि-भूसिए-सब अलंकारों से विभूषित होकर महती महालियाए-बड़ी से बड़ी
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