Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrut Skandh Sutra Sthanakvasi
Author(s): Atmaram Maharaj
Publisher: Padma Prakashan

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Page 540
________________ 9 ४ दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् अप्पडिपूयए अप्रतिपूजक अर्थात् गुरु की सेवा न करने वाला अप्पडिविरया जीव-हिंसा या पाप अनिवृत्त __ अर्थात् उस में लगे हुए अप्पणिज्जियाओ-अपनी ही अप्पणो अपनी अप्प-तरो=अल्पकाल पर्यन्त अप्प-तुमंतुमा परस्पर 'तू-तू' शब्द न करना अप्पत्तिय बहुले बहुत द्वेष वाला अप्पमत्ता अप्रमत्त अर्थात् प्रमाद-रहित अप्प-सद्दा विपरीत शब्द न करना अप्पाणं अपने आत्मा की अप्पाहारस्स-थोड़ा खाने वाले अप्फालेइ-थपथपाता है अबंभयारी जो ब्रह्मचारी नहीं है अबहुस्सुए अबहुश्रुत अर्थात् जिसने शास्त्रों का पूरा अध्ययन नहीं किया है अबोहीए अबोध के भाव उत्पन्न करने वाला अबोहिया अबोध उत्पन्न करने वाले अब्भक्खाणाओ-सामने २ मिथ्या दोषारोपण अभिंतरिया भीतरी अभविए-अयोग्य अभविया अयोग्य अभिक्खणं बार-बार अभिगच्छइ प्राप्त करता है अभिजुंजिय-अपने वश में करके अभिलसति-अभिलाषा करता है अभिलसणिज्जा-अभिलषणीय | अभिसमागम्म जान कर अभूएणं असत्य (आक्षेप से) अभ्भुट्टित्ता उद्यत अम्मा-पियरो-माता-पिता अय-गोले लोह-पिण्ड अयत्ते अयत्न-शील अयस-बहुले बहुत अयश वाला अरति-रति चिन्ता और प्रसन्नता अलंकिय=अलंकृत अलंकिये=अलंकृत अलोग अलोक को अवक्कमंति=चले जाते हैं अवण्णवं-निन्दा करने वाला अवयरइ-अपकार करता है अवराहसि-अपराध पर अवहटु-लेसस्स=कृष्णादि अशुभ लेश्याओं को दूर करने वाला अवाय-मइ निश्चय-रूप मति । मतिज्ञान __का तीसरा भेद अवि-समुच्चय के लिए है | अवितक्कस्स जो फल की इच्छा नहीं करता । सा. कुतर्क-रहित, अच्छे विचारों वाला अविमणो शङ्का-रहित । सा. शून्यता रहित चित्त वाला अवोगडाए बिखरने के पहले अवोच्छिन्न-व्यवच्छेद-रहित असंदिद्ध बिना सन्देह के असंदिद्ध-वयणे संशय-रहित वचन बोलने वाला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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