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दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम्
रायणियस्स रत्नाकर के रायगिह-नयरं राजगृह नगर रायगिहस्स=राजगृह नगर के रायगिहे=राजगृह राय-पिंडं-राजा का आहार रायधाणिस्स-राजधानी के राया राजा रीएज्जा चले रुइ-सव्वधम्म-रुइ देखो रुइ-मादाए रुचि की मात्रा से रुव-कसाय-दंतकठ्ठ-देखो रुक्ख-मूलगिहंसि वृक्ष के मूल में अथवा __ वृक्षों की जड़ से बने हुए घर में रुहिर रुधिर रोगायंकरोगातक, रोग की पीड़ा लगड-साइस्स-लकड़ी के समान आसन
ग्रहण करने वाले का लम्भेज्जा प्राप्त करे लयाए लता से लित्ताणुलेवण-तला=(मेद-वसा आदि से) _ नीचे का हिस्सा लिपा हुआ होता है लुक्खं रूक्ष, रूखा (पापड़ आदि पदार्थ) लुत्त-सिरए लुञ्चित केश वाला लुभइ लोभ करता है लेलुए प्रस्तर-खण्ड पर, ढेले पर लेलुएण=कंकड़ों से, ढेलों से लोग, यं लोक को लोयंसिलोक में लोहिय-पाणी रुधिर से जिसके हाथ
लिप्त हैं
वंचण छली वंता-वमन कर, दूसरों के सामने प्रकट __या दूर फेंक कर वंतासवा-वमन के द्वार वंदति स्तुति करता है वंदंति-वन्दना करते हैं, स्तुति करते हैं वंदित्ता-स्तुति कर वग्गुहिं =वचनों से वग्घारिय-हत्थेण लिप्त हुए हाथ से वग्घारिय-पाणिस्स दोनों भुजाओं को ___ लम्बी कर वज्ज-बहुले-पापी, पाप-पूर्ण कर्मों वाला वट्टग बटेर वट्टमग्गं नियत मार्ग में वट्टा=अंतोवट्टा देखो वण-कम्मंताणि जंगलों के ठेके वणीमग-भिखारी वण्णओ=वर्णन करने योग्य है वण्ण-वाई-वर्णवादी, आचार्य आदि के
गुण-गान करने वाला वण्ण-सजलणया-वर्णसंज्वलनता.
गुणानुवादकता, कीर्ति या यश
फैलाना, विनय-प्रतिपत्ति का एक भेद वत्तव्वं कहना चाहिए वत्ता कहने वाला वत्तेति देता है वत्थु पदार्थ, व्यक्ति विशेष या पूर्वोत्तर
प्रकरण वदइ कहते हैं वदमाणे बोलते हुए
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