Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrut Skandh Sutra Sthanakvasi
Author(s): Atmaram Maharaj
Publisher: Padma Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 565
________________ मायं = माया को माया=माता मायाए=माया से मायाओ = माया से माया - मोसं=माया - युक्त मृषा-वाद, कपटयुक्त झूठ, सत्रहवां पाप-स्थान माया - मोसाओ = कपट- युक्त झूठ से मारेइ = मारता है मासस्स = एक महीने की मासियं = मासिकी मासिया = एक मास की माहण-माहन या ब्राह्मण माहणे=माहन, अहिंसात्मक उपदेश सुनने वाला श्रावक मिच्छा - दंसण - सल्लाओ = मिथ्यादर्शन शल्य, मिथ्यादर्शन के कारण बार-बार अन्तःकरण में शल्य अर्थात् कांटे के समान दुःख देने वाला, पाप का अट्ठारहवां स्थान मिलति = मिलते हैं मिलित्ता = मिलकर मुइंग=मृदग मुंडे = मुण्डित मुंडेह= मुंडित करो शब्दार्थ कोष मुच्छिया = मूच्छित, आसक्त मुट्ठी = मुट्ठी से मुत्ति - मग्गे = मुक्ति का मार्ग मुसा - वायं = झूठ बोलना मूल - भोयणं = मूल का भोजन, वृक्ष की जड़ों का भोजन Jain Education International मेहुणं = मैथुन मोडिय - नियल - जुय - देखो मोहणिज्जताए = मोहनीय कर्म के वश में होकर मोह - गुणा = मोह से उत्पन्न होने वाले गुण मोह - ठाणाइं = मोहनीय कर्म के स्थान मोहणिज्जं = मोहनीय कर्म य=और रट्ठस्स = राष्ट्र के देश के रति = प्रसन्ता रत्ति - परिमाणकडे = रात्रि में मैथुन के परिमाण वाला = सा. रात्रि का परिमाण किया हुआ रन्ना = राजा से रन्नो राजा का रयण - करंडक - समाणी-रत्नों के डिब्बे के समान रसियं = रस युक्त रह-रथ रहवरा=श्रेष्ठ रथ रहा = रथ राइ - भोइणं-रात का भोजन ओवरायं = रात-दिन रातिणिअ - परिभासी = आचार्य उपाध्याय आदि गुरुजनों के सामने निरंकुश बोलने वाला, असमाधि के पांचवें स्थान का सेवन करने वाला २६ रायणिए = रात्निक आचार्य आदि गुरुजन रायणिएणं = रत्नाकर के (साथ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576