Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrut Skandh Sutra Sthanakvasi
Author(s): Atmaram Maharaj
Publisher: Padma Prakashan

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Page 571
________________ शब्दार्थ-कोष समाहि-बहुला=अधिक समाधि वाले सव्व-लोय-पर-सब लोकों में सब से समुप्पज्जइ-उपार्जन करता है बड़ा समुप्पज्जेज्जा उत्पन्न हो जाय सव्व संगातीते सब तरह के संग से पृथक्, समोसढे विराजमान हुए सांसारिक ममता से रहित समोसरणं समवसरण, तीर्थंकर का सव्व-सिणेहातिक्कते सब प्रकार के स्नेह पधारना से दूर रहने वाला। सम्म अच्छी तरह सव्वहा सर्वथा सम्माणेति सम्मान करता है सव्वालंकार-विभूसिया-सब अलंकारों से सम्म, म्मा-वाइ सम्यग्-वादी भूषित होकर सयं-अपने आप सव्विंदिएहिं सब इन्द्रियों को सयणासनं शयन और आसन ससरक्खाएसजीव रज से भरे हुए। सया-सदा, हर आसन ससणिद्धाए=स्निग्ध, गीली सरीर-संपया शरीर-संपत्, अनुकूल . ससिव्व चंद्रमा के समान शारीरिक स्वास्थ्य आदि सहति सहन करता है सरूवे रूप-सम्पन्न सहरिए हरियावल वाली सवणयाए सुनने के लिए स(सा)हा-हेउं श्लाघा के लिये, अपनी सव्व-सब प्रशंसा के लिये सव्व काम-विरत्ते सब कामों से विरक्त सही-हेउं मित्रता के लिये सव्व-काम-विरत्तस्स सब कामों से निवृत्ति । साइणा स्वाति नक्षत्र में करने वाले का साइमं स्वादिष्ट पदार्थ सव्व-चरित्त-परिवुड्ढे सर्वथा दृढ चरित्र साइ-संपओग-बहुले अच्छे माल में वाला . कपट से खराब माल का प्रयोग सव्वण्णु-सर्वज्ञ करने वाला सव्वतो सब प्रकार से सागारिय-पिंड-स्थानदाता का आहार सव्वत्थेसु=गुरु आदि के सब कार्यों में सामाइयं सामायिक व्रत सव्व-दंसी-सर्वदर्शी सामि हे स्वामिन् ! सव्व-दुक्खाणं सब दुःखों का सामी स्वामी, मालिक, भगवान् महावीर सव्व-मोह-विणिमुक्का=सब प्रकार के . स्वामी मोहादि कर्मों से छूटे हुए सारक्खिता संरक्षण करने वाला सव्व-राग-विरत्ते सब रागों से विरक्त सावज्जा=पाप-पूर्ण, निन्दनीय कर्म - - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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