Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrut Skandh Sutra Sthanakvasi
Author(s): Atmaram Maharaj
Publisher: Padma Prakashan

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Page 572
________________ ३६ दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् - सावयाणं श्रावकों की सावियाणं श्राविकाओं की साहटु-संकुचित कर साहम्मियत्ताए=साधर्मिकता से, सहधर्मी रूप से साहम्मियस्स-सहधर्मी के साहरिए संहरण किये गए, ले जाए गए साहस्सिया साहसिक है साहारणट्ठा जन-साधारण के (उपकार के) लिये साहिलया-सहायता, विनय-प्रतिपत्ति का एक भेद साहु-ठीक है सिंघाण-उच्चार-पासवण-देखो सिंचित्ता सिञ्चन कराने वाला सिंहासणे सिंहासन सिंहासण-वरंसि-श्रेष्ठ सिंहासन पर सिक्खाए शिक्षा के लिये सिज्जं-शयन करना सिज्जा-संथारए शय्या या बिछौने के ऊपर सिज्जा-संथारगं शय्या या बिछौने को सिज्झति=सिद्ध हो जाता है सिज्झेज्जा सिद्ध होगा सिया हो जावे. सिरसा-शिर से सिरी-लक्ष्मी सिलाए शिला के ऊपर सिला-पट्टए शिला-पट्टक पर सिहा-धारए शिखा धारण करने वाला सीतोदग-वियडंसि-शीत और विशाल जल में सीतोदय–वियड सचित्त शीतल जल सीयं-शीत सील-वय-(व्वत)-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण पोसहोववासाइं=शीलव्रत, गुणव्रत, विरमणव्रत, प्रत्याख्यान और पौषध-उपवासादि सीसं शिर को सीसम्मि शिर पर सीह-पुच्छयं=सिंह की पूंछ से बांधना सीहासणओ-राज-सिहांसन से सुकुमाल-पाणि-पाए सुकुमार अर्थात् कोमल हाथ और पैर वाला सुक्क-उच्चार-पासवण-देखो सुक्कड-दुक्क्डं-पुण्य और पाप के सुक्क-पक्खिए शुक्ल-पाक्षिक, जिसे अर्ध पुद्गल परिवर्तन के अन्दर मोक्ष जाना. हो, वह सुक्क-मूले शुष्क-मूल, जिसकी जड़ सूख गई हो संगति सुगति, श्रेष्ठ गति को सुचत्त-दोसे पूर्णतया दोषों को छोड़ने वाला सुचरियस्स सुचरित्र का, शुद्ध आचरण का सुच्चिण्णा-शुभ सुणस्स कुत्ते का सुणीहड सुख-पूर्वक निकला हुआ | सुण्हा-पुत्र-वधू Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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