Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrut Skandh Sutra Sthanakvasi
Author(s): Atmaram Maharaj
Publisher: Padma Prakashan

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Page 568
________________ ३२ विणयं= विनय विणय - पडिवत्तीए = विनय प्रतिपत्ति से, विनय के आचरण से विणय - पडिवत्ती = विनय - प्रतिपत्ति विण्णय - परिणायमित्ते = जब उसका ज्ञान परिपक्व हो जाता है वित्तंमि=धन पर वित्ति= आजीविका विदाय = जानकर विदितापरे = मोक्ष के स्वरूप को जानकर विद्वंसण - धम्मा= नाश होना जिनका धर्म है विपडिवदंति = (अपने दोषों को दूसरों के माथे मढ़कर) अपलाप करते हैं। विप्पजहणिज्जा=त्यागने योग्य विप्पमुक्कस्स=बन्धनों से मुक्त विप्पवसमाणे दूर रहने पर विभज्ज=फोड़कर विभूसिए - विभूषित, अलङ्कृत वियड =सचित्त दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् वियड-गिहंसि खुले घर में वियड - भोई - प्रकाश में ही अर्थात् सूर्य के रहते ही भोजन करने वाला, रात्रि को भोजन न करने वाला वियार - भूमि = मलोत्सर्ग की भूमि, पाखाना जाने की जगह Sux वियारेइ = विदारणा करता है, विनाश करता है वियाले = विकाल में, रात्रि या संध्या के समय Jain Education International विरत्तस्स - सव्व - काम - विरत्तस्स देखो विरूव-रूवेहिं - नाना प्रकार के विलेवण = विलेपन, कसाय दंतकट्ठ- देखो विवज्जेज्जा = स्त्री, पशु और पंडक (नपुंसक) से रहित विसमासी = सर्प विसो = विष को विस्सरं=विस्वर, कर्ण-कटु विहरइ = विचरता है, विचरती है विहरति = विहार करें विहरमाणे = विचरता हुआ विहरामो = विचरण करेंगे विहरि ( रे ) ज्जा = विचरें, विहार करें विहारेण = विहार से विहिंसइ = मारता है वुड्ढ ( टठ्) - सीले = वृद्ध जैसा स्वभाव रखने वाला वुड्ढ - सेवि = वुद्धों की सेवा करने वाला वुत्ता = कथन किये हैं वुत्ता = (समाणे ) = कहे जाने पर वेत्ते =वेत से |वेढेण= गीले चाम से वेय- छिन्नयं = जननेन्द्रिय का छेदन वेयणिज्जं = वेदनीय कर्म वैयावच्चे = सेवा के लिए वेर - बहुले = अधिक वैर करने वाला वेरमण = विरमण व्रत, सावद्य योग की निवृत्ति रूप सामायिक व्रत वेरातणाइं - वैर भाव के स्थानों को For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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