Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrut Skandh Sutra Sthanakvasi
Author(s): Atmaram Maharaj
Publisher: Padma Prakashan

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Page 567
________________ वदह = कहो वदिज्जा = कहे वदित्तए = बोलने के लिए वद्धावित्ता = बधाई देकर वद्धावेई = बधाई देते हैं वमे= उगल दे, छोड़ दे वयइ = बोलता है वयं=हम वयंति = कहते हैं वय = वचन को वयण = वदन - नयण - वसन देखो वयण - संपया = वचन - संपत् वचन रूपी धन, मीठा और स्पष्ट भाषण वयासी = कहने लगी वर - दंसिणं = श्रेष्ठ- दर्शन वाले, केवल - दर्शन से देखने वाले वर-भंडग-मंडियाइं = उत्तम भूषणों सजे हुए वलवाउयं = सेना-नायक को ववगय-गह- चंद-सूर-णक्खत्त शब्दार्थ-कोष जोइसप्पभा = जिनसे ग्रह, चन्द्रमा, सूर्य और नक्षत्रों की ज्योति की प्रभा दूर हो गई है ववहरमाणे = व्यवहार पालन करता हुआ वसभ - पुच्छ्यं = वृषभ की पूंछ से बांध कर दण्ड देना वसा=वसा, चर्वी वसित्तो = वसता हुआ वाएइ = पढ़ाता है, सिखाता है वाणिय-कम्मंताणि= व्यपार की मण्डियां Jain Education International वाणियगाम= वाणिज्यग्राम नाम नगर वाताऽऽतवेहिं = वायु और आतप से वायं=वाद-विवाद वाय-गुत्तीणं-वचन- गुप्ति वाले वायणा - संपया=वाचना-संपत्, उच्च अध्ययन वारि - मज्झे = पानी के बीच में वासा - वासेसु =वर्षा ऋतु में, चौमासे में वासाइं= वर्ष ( पर्यन्त ) वाहण= वाहन, बलीवर्दादि वाहण - सालं = वाहन - शाला में वाहणारं = वाहनों को वाहरमाणस्स = बुलाने पर विउक्कम = बलात्कार से विउलं=बहुत सा, बहुत से विउसविआणं= उपशान्त हुए विउसमणत्ताए= उपशम करने के लिए ३१ विकत्तए - काटने वाला विक्खंभइत्ता = मध्य में कर । सा. (दोनों पैरों को) फैलाकर, चौड़ाकर विक्खेवणा- विणणं-विक्षेपणा विनय से विक्खोभइत्ताणं = विक्षुब्ध करके विगाहिआ=डुबकियां देकर विचित्त - सुय= स्व- समय और पर समय के सूत्रों के अधिगत होने से जिसके व्याख्यानादि में विचित्रता हो विजएणं = परदेश में विजय विजयं = निश्चित भाग विणइत्ता = स्थापन करने वाला For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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