Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrut Skandh Sutra Sthanakvasi
Author(s): Atmaram Maharaj
Publisher: Padma Prakashan

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Page 553
________________ का भोजन : तले=ताल वृक्ष तव - नियम - बंभचेर - वासस्स -तप, नियम और ब्रह्मचर्य पालन का तव - समायारी = तप कर्म करना, तप का अनुष्ठान तवसा = तप से तसे - (स्से ?) = त्रस अर्थात् भय के कारण एक स्थान से दूसरे स्थान वाले द्विइन्द्रियादि जीव जाने तस (स्स? ) - पाणघाती = त्रस प्राणियों का घात करने वाला शब्दार्थ- कोष तस्स= उसी के तस्सेव = उसी को तहप्पगारा = इस प्रकार के तहा-रूवे -तथा-रूप, शास्त्र में वर्णन किए गुणों को धारण करने वाला तहेव = उसी प्रकार (पूर्ववत् ) ताणि= उनको तामेव = उसी तालेह = मारो तिकट्टु = इस प्रकार (कहकर ) तिक्खुत्तो = तीन बार तितिक्खति = अदैन्यभाव अवलम्बन करता है तित्थयरे = चार तीर्थ स्थापन करने वाले तित्थाणं - ज्ञानादि तीर्थों के तिप्पंति = रुलाते हैं तिप्पण= रुलाना तिप्पयन्ता = निन्दा करता हुआ Jain Education International तिरिक्ख - जोणिया = तिर्यग् योनि- सम्बन्धी पशु पक्षी आदि तिरिच्छं-तिरछे, टेढ़े तिरियं = तिर्यग् लोक तिव्वासुभ-समायारे= अत्युत्कट अशुभ समाचार (आचरण) वाला तीरिता=पूर्णकर तीसे = उसके तुमं=तू तुम (कासि ) = तूने यह कार्य किया है तुम्हे = तुम लोग तुयट्टित्ता = शयन करे ते = तेरे, आपके ते = वे तेणं=उस तेणेव = उसी स्थान पर तेसिं= उनकी त्ति = इति, इस प्रकार थंडिलंसि=स्थण्डिल अर्थात् साधु के शौच करने की जगह पर १७ थद्धे= अहंकारी, घमण्डी थिर- संघयण - जिसके शरीर का संगठन या बनावट दृढ़ हो थिल्लिए =यान विशेष, रथ विशेष थेरेहिं = स्थविर थेरोवघाइए=स्थविरों का उपघात करने वाला अर्थात् स्थविरों के दोष ढूंढ कर उनका अपमान करने वाला | असमाधि के छठे स्थान का सेवन करने वाला For Private & Personal Use Only 10 www.jainelibrary.org

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