Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrut Skandh Sutra Sthanakvasi
Author(s): Atmaram Maharaj
Publisher: Padma Prakashan
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दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम्
झंपित्ता=अनिष्ट वचन कह कर झाणं धर्म-ध्यान झियायमाणाणं धर्म ध्यानादि शुभ ध्यान
करने वाले झुरण झुराना झुरंति झुराते हैं ट्ठिच्चा स्थिति कर ठाणं कायेत्सर्ग करना अर्थात् शरीर को __निश्चल बना कर ध्यान करना ठाणा असमाहि-ठाणा देखो ठाणस्स-उस समय ठावइत्ता स्थापन करने वाला ठितिक्खएण=देव लोक में स्थिति क्षय होने
के कारण ठितीए स्थिति णं वाक्यालंकार के लिए अव्यय ण निषेधार्थक अव्यय णक्खत्त-ववगय-गह-चंद देखो णणत्थ-अन्यत्र नहीं णत्थि नहीं है णयरस्स-नगर के परिंदे राजा (श्रेणिक) णवाणं नूतन (नये) णस्संति-नाश हो जाते हैं णाणावरणं ज्ञानावरणीय, ज्ञान-शक्ति को
दबाने वाले कर्म णिगिण्हित्ता=निग्रह करने वाला, दूर करने
वाला णिग्गंथ-निग्गंथ देखो णिग्गंथी निग्गंथी देखो
णिण्हाइ-छिपाने वाला णितिया-वाइ=एकान्ततया पदार्थों की
स्थिरता स्थापित करने वाला णिदाणं निदान कर्म णिदाणस्स=निदान कर्म का णिरया नरक णिवेदह निवेदन करो णिविठू छंद-राग-मती णिविढे देखो णीणेइ निकालता है णूणं निश्चय से णेयारं नेता को णेरइया नारकी, नरक में रहने वाले
जीव णो नहीं, निषेधार्थक अव्यय ण्हाए स्नान किया ण्हाण स्नान, कसाय दंतकट्ठ देखो तओ-तीन तं अतः तंजहा जैसे तच्चपि-तीन बार तज्जण-तालणाओ=तिरस्कार करना और
मारना तज्जाएणं उसी के वचनों से तज्जेह-तर्जित करो तते, तो इसके अनन्तर तत्थ-वहां तत्थ-गए वहीं पर बैठा हुआ, अपने ही
स्थान पर बैठा हुआ तया-उस समय | तया-भोयणं त्वक् अर्थात् वृक्ष की छाल
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